यह मंदिर मीनाक्षी सुन्दरेश्वर मन्दिर, मीनाक्षी अम्मां मंदिर (Meenakshi Amman Mandir), मीनाक्षी मंदिर के नाम से विश्वविख्यात है। यह मंदिर तमिलनाडु राज्य के मदुरई नगर में वैगई नदी के दक्षिणी तट पर स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव और पार्वती के प्रति पूर्ण समर्पित है। इस मंदिर में मुख्य पर्व चैत्र मास (अप्रैल) में आयोजित होता है। इस पर्व में भाग लेने के लिए हजारों लोग पूरे भारत से आते हैं। इस मंदिर की मान्यता है कि यहां पर आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं अवश्य ही पूर्ण होतीं हैं।
मीनाक्षी मंदिर की अनेक पौराणिक कथाएं हैं। सबसे पुरानी कहानी में यह बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण इंद्रदेव (Devraj Indra) ने स्वयं कराया है। दूसरी कथा में यह वर्णित है कि पांड्यराजा मलयध्वज और उनकी पत्नी कांचना ने पुत्र प्राप्ति के लिए अनेकों तप व यज्ञ किये। इसके बाद उन्हें एक पुत्री प्राप्त हुई। इससे राजा व रानी निराश हो गये। इसके बाद ईश्वर ने उन्हें स्वप्न में संदेश दिया कि आप इसी पुत्री को ही अपना उत्तराधिकारी बनाना। इसी से आपका कल्याण होगा।
राजकुमारी का नाम पहले तादातगाई था लेकिन राज्य का सरकारी चिन्ह मछली था। राजकुमारी की आंखें मछली की आंखों के समान ही गोल और सुन्दर थी। इसलिये राजकुमारी का नाम मीनाक्षी (Meenakshi) रखा गया। 64 कलाओं में प्रवीण मीनाक्षी को माता पार्वती का अवतार माना जाता है। यह भी मान्यता है कि माता पार्वती (mata parvati) से विवाह करने के लिए भगवान शिव सुंदरेश्वर (Sundareshwar) के रूप में यहां आये थे और उनसे विवाह भी किया था।
मीनाक्षी अम्मां मंदिर (Meenakshi Amman Mandir) के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि यह मंदिर 7 वीं शताब्दी का है। लेकिन साथ ही इस मंदिर को 5000 साल पुराना माना जाता है। इसके साथ ही यह कहा जाता है कि मुगलकाल में 14 वीं शताब्दी के आसपास मंदिर पर आक्रमण किया गया था।
इतिहास के अनुसार वर्ष 1310 ई. में दिल्ली के अलाउद्दीन ने आक्रमण करके तहस-नहस किया था। मीनाक्षी (Meenakshi) मंदिर के 14 मीनारों में से केवल सुंदरेश्वर (Sundareshwar) और मीनाक्षी (Meenakshi) को छोड़कर सभी को नष्ट कर दिया गया था।
मीनाक्षी मंदिर का निर्माण 15 वीं शताब्दी में वर्ष 1560 ई. में मदुरई के राजा विश्वनाथ नायक ने करवाया था। 1623-55 के दौरान तिरुमलाई नायक के शासन काल में मंदिर में अनेक परिसरों का निर्माण किया गया। इसमें वसंत मंडपम और किलिकोकोंडू मंडपम भी है।
मीनाक्षी अम्मां मंदिर (Meenakshi Amman Temple) के तालाब और मीनाक्षी (Meenakshi) नायक मंडपम के गलियारों का निर्माण रानी मंगलम ने कराया था।
माता पार्वती और भगवान शिव (Shivji Bhagwan) को समर्पित यह मीनाक्षी मंदिर (Meenakshi Mandir) द्रविड़ वास्तुकला को दर्शाता है। मदुरई का यह मीनाक्षी मंदिर एक पौराणिक मदिर है। यह मंदिर लगभग 14 एकड़ क्षेत्रफल में स्थापित है। यह मंदिर अपने गोपुरम के लिए प्रसिद्ध है।
इस मंदिर की दीवारों की महीन नक्कासी यानी डिजाइन बहुत ही आकर्षक है। इसके अलावा इस मंदिर में लगभग 1000 स्तम्भ हैं। ये सभी स्तम्भ अपनी खूबसूरत कला के साथ देवी-देवताओं की आकर्षक छवियों के लिए प्रसिद्ध हैं।
ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण आर्यनाथ मुदलियार ने कराया था। मुदलियार की घोड़े पर सवारी करते हुए मूर्ति इस मण्डप की सीढ़ियों के पास ही स्थित है। इसी मण्डप में मीनाक्षी मंदिर (Meenakshi Temple) का कला संग्रहालय स्थित है, जहां पर आप 1200 वर्ष के इतिहास के दर्शन कर सकते हैं। इस मण्डप के बाहर ही संगीतमय स्तम्भ स्थित है। इसमें प्रत्येक स्तम्भ पर थाप देने से अलग-अलग तरह का संगीत सुनाई देता है। यहां पर अनेक टॉवर भी हैं। इनमें दक्षिणी टॉवर सबसे ऊंचा 170 फीट का है।
इस मंदिर के गर्भगृह को 3500 साल पुराना बताया जाता है। इस गर्भगृह में भगवान विष्णु (Vishnu Bhagwan), भगवान शिव (Shiv Bhagwan), इंद्रदेव सहित अनेक देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित हैं।
मीनाक्षी मंदिर (Meenakshi Mandir) में भगवान शिव के नटराज (Nataraja) वाली मूर्ति स्थापित है। इस मूर्ति की खास बात यह है कि भगवान शिव ताण्डव नृत्य करते हुए दाहिने पैर को उठाये दिखते हैं जबकि अन्य नटराज प्रतिमाओं में भगवान शिव अपना बायां पैर उठाये दिखते हैं। यह विशाल नटराज की मूर्ति एक बड़ी चांदी की वेदी में बंद है। इसको वेली अम्बलम यानी रजत आवासी कहते हैं।
यहां पर एक विशाल गणेश मंदिर (Ganesh Mandir) भी है। इसको मुरुकनय विनयगर कहते हैं। यहां की प्रतिमा के बारे में यह मान्यता है कि यह प्रतिमा सरोवर की खुदाई समय प्रकट हुई थी।पौत्रमारे सरोवर मंदिर परिसर में एक स्वर्ण कमल वाला सरोवर भी है, जिसे पौत्रमारे कूलम कहा जाता है। मान्यता है कि इन्द्रदेव ने स्वर्ण कमल यही से तोड़े थे। 165 फीट लम्बे और 120 फीट चौड़े इस पवित्र सरोवर में होने वाले कमलों का रंग स्वर्ण की तरह का होता है। यहां आने वाले भक्त इस पवित्र सरोवर की परिक्रमा करते हैं।
मीनाक्षी अम्मां मंदिर (Meenakshi Amman Temple) का प्रमुख पर्व चैत्र माह अर्थात् अप्रैल-मई में आयोजित किया जाता है। इस पर्व को तमिल भाषा में चिथिरई कहा जाता है। कहा जाता है कि यह पर्व मीनाक्षी अम्मां और सुन्दरेश्वर (Sundareshwar) अर्थात् माता पार्वती-शिव के विवाह के रूप में मनाया जाता है। मान्यता यह है कि मीनाक्षी माता का विवाह इसी दिन हुआ था।
दस दिनों के लिए आयोजित होने वाला इस पर्व में शिव-पार्वती का विवाह, मीनाक्षी का राज अभिषेक एवं अनेक देवी-देवताओं का विवाह कराया जाता है। साथ ही अनेक धार्मिक संस्कार भी आयोजित किये जाते हैं। इस दस दिवसीय पर्व के दौरान मंदिर में बहुत धूमधाम होती है और पूरे भारत से लाखों लोग यहां आते हैं। इसके अलावा नवरात्रि एवं शिवरात्रि के अवसर पर भी मीनाक्षी मंदिर में भारी धूमधाम रहती है। इस दौरान भी बाहर से हजारों लोग यहां आकर श्रद्धापूर्वक पूजा-अर्चना (puja archana) करते हैं।
बाहर से आने वाले यात्रियों के लिए मंदिर के दर्शन का समय मालूम होना बहुत जरूरी है। मदुरई शहर के बीचोंबीच स्थित मीनाक्षी अम्मां मंदिर (Meenakshi Amman Mandir) के कपाट दर्शनों के लिए सुबह 5-00 बजे खुलते हैं और दोपहर 12-00 बजे बंद हो जाते हैं। इसके बाद सायं 4-00 बजे पुन: कपाट खुल जाते हैं और रात्रि 9-00 बजे कपाट पुन: बंद हो जाते हैं।
मीनाक्षी मंदिर (Meenakshi Mandir) जाने के लिए पूरे वर्ष भर समय अच्छा माना जाता है लेकिन मीनाक्षी मंदिर की सजावट व धूमधाम देखनी हो तो अप्रैल-मई में पर्व के दौरान जाना चाहिये।
मदुरई में स्थित मीनाक्षी मंदिर पहुंचने के लिए हवाई जहाज, रेल एवं सड़क मार्ग तीनों की ही सुविधाएं हैं। मंदिर से 10 किमी दूर मदुरई हवाई अड्डा है, जहां से आने की पूर्ण सुविधाएं हैं। मंदिर से डेढ़ किमी दूरी पर मदुरई रेलवे स्टेशन है, जहां देश के किसी कोने से आया जा सकता है। इसी तरह सड़क मार्ग से भी मदुरई देशभर से जुड़ा हुआ है।
मीनाक्षी मंदिर से जुड़े रोचक प्रश्न और उत्तर
प्रश्न: मीनाक्षी मंदिर कहाँ स्थित है और इसका नाम किस नामों से पुकारा जाता है?
उत्तर: मीनाक्षी मंदिर तमिलनाडु राज्य के मदुरई नगर में वैगई नदी के दक्षिणी तट पर स्थित है, और इसे मीनाक्षी सुन्दरेश्वर मन्दिर, मीनाक्षी अम्मां मंदिर, और मीनाक्षी मंदिर के नामों से जाना जाता है।
प्रश्न: मीनाक्षी मंदिर की कथा में कौन-कौन से पौराणिक किस्से शामिल हैं?
उत्तर: मीनाक्षी मंदिर की कथाएं कहती हैं कि इसका निर्माण इंद्रदेव ने कराया था, और एक और कथा में पांड्यराजा मलयध्वज और पत्नी कांचना के तप और यज्ञ के बाद उन्हें पुत्री प्राप्त हुई थी।
प्रश्न: मीनाक्षी मंदिर का निर्माण कब और कैसे हुआ था?
उत्तर: मीनाक्षी मंदिर का निर्माण 15 वीं शताब्दी में मदुरई के राजा विश्वनाथ नायक द्वारा कराया गया था।
प्रश्न: मीनाक्षी मंदिर की संरचना में कौन-कौन से विशेषताएं हैं?
उत्तर: मीनाक्षी मंदिर द्रविड़ वास्तुकला का प्रतीक है और इसमें गोपुरम्स और दीवारों की महीन नक्कासी बहुत आकर्षक है। इसमें लगभग 1000 स्तम्भ हैं जो देवी-देवताओं की आकर्षक छवियों के लिए प्रसिद्ध हैं।
प्रश्न: मीनाक्षी मंदिर के प्रमुख पर्व और उनकी तिथियाँ क्या हैं?
उत्तर: मीनाक्षी मंदिर का प्रमुख पर्व चैत्र माह में आयोजित होता है, जिसे तमिल में चिथिरई कहा जाता है। इसके अलावा नवरात्रि और शिवरात्रि पर भी मंदिर में धूमधाम होता है।
प्रश्न: मीनाक्षी मंदिर के दर्शन के लिए सबसे अच्छा समय क्या है और इसे पहुंचने के लिए कौन-कौन से साधन हैं?
उत्तर: मीनाक्षी मंदिर जाने के लिए पूरे वर्ष में समय अच्छा माना जाता है, लेकिन अप्रैल-मई में पर्व के दौरान जाना चाहिए। मदुरई तक पहुंचने के लिए हवाई, रेल, और सड़क मार्ग सभी उपयुक्त हैं।
प्रश्न: मीनाक्षी मंदिर का वास्तुकला में कौन-कौन से उदाहरण शामिल हैं और इसके गोपुरम्स कितने हैं?
उत्तर: मीनाक्षी मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला के एक शानदार उदाहरण के रूप में जाना जाता है, जिसमें नागर, द्रविड़, और विजयनगर शैली का मिश्रण है। इसमें आठ गोपुरम्स हैं, जिनमें प्रमुख गोपुरम्स भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित हैं।
प्रश्न: मीनाक्षी मंदिर के अलावा मदुरई में कौन-कौन सी रोचक स्थान हैं?
उत्तर: मदुरई में यात्री और पर्यटक अन्य कई रोचक स्थानों को भी देख सकते हैं, जैसे कि थिरुमलै नायक महल, आलगार्ह कोविल, गांधी मुसेयम, और कुछ भव्य बाजार।
प्रश्न: मीनाक्षी मंदिर के प्रवेश के लिए किस प्रकार की पूजा विधि अपनाई जा सकती है?
उत्तर: मीनाक्षी मंदिर में प्रवेश के लिए पूजा विधि अपनाई जा सकती है, जिसमें यात्री श्रद्धाभाव से प्रवेश करते हैं और देवी-देवताओं को अर्पित करने का अवसर प्राप्त होता है।
प्रश्न: मीनाक्षी मंदिर के परिसर में कौन-कौन से धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं?
उत्तर: मीनाक्षी मंदिर में विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं, जैसे कि भगवान की आराधना, संगीत सभा, और धार्मिक पर्वों के आयोजन।
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