भगवान परशुराम (Bhagvan Parshuram) महर्षि भृगु (Maharishi Bhrigu) के पौत्र महर्षि जमदग्नि (Maharishi Jamdagni) के पुत्र थे। पुत्र प्राप्ति के लिए महर्षि जमदग्नि ने पुत्रेष्टि यज्ञ किया था, जिससे भगवान इंद्र (Bhagwan Indra) ने प्रसन्न होकर उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति का वरदान दिया था। परशुराम जी की माता का नाम रेणुका था।
पुराणों और ग्रंथों के अनुसार परशुराम जी (Parshuram Ji) का मूल नाम राम था। महादेव (MahaDev) के द्वारा वरदान स्वरूप परशु अस्त्र प्रदान किए जाने के कारण ही इनका नाम परशुराम पड़ा जिसका अर्थ है परशु के साथ राम। परशु का अर्थ है कुल्हाड़ी, जिसे परशु या फरसा भी कहा जाता है। भगवान परशुराम का मुख्य अस्त्र कुल्हाड़ी है, जिसे उन्होंने भगवान शिव (Bhagwan Shiv) की कठिन तपस्या करके प्राप्त किया था।
भगवान परशुराम (Bhagvan Parshuram) महादेव के परम उपासक थे। परशुराम जी ने महादेव की कठिन तपस्या की थी जिससे महादेव ने प्रसन्न होकर उन्हें शास्त्रों और युद्ध कला की सम्पूर्ण शिक्षा दी थी। इसलिए माना जाता है कि परशुराम के गुरु स्वयं महादेव ही थे। महादेव ने उन्हें कठिन युद्धकला कलारीपयाट्टू की विद्या भी प्रदान की थी और चिरंजीवी का वरदान परशुराम जी को महादेव ने ही दिया था।
भगवान परशुराम (Lord Parshuram) को अन्य नामों से भी जाना जाता है जैस, जमदग्नि के पुत्र होने के कारण जामदग्न्य, भृगु वंश में जन्म लेने के कारण भार्गव, भृगुपति जिसका अर्थ है भृगु के वंशजों का भगवान, महर्षि जमदग्नि की पत्नी और परशुराम जी की माता का नाम रेणुका था इसलिए रेणुकेय, परशुधर (Parshudhar) अर्थात् जिसके हाथ में फरसा हो इत्यादि नामों से जाना है।
इससे परे भगवान परशुराम (Lord Parshuram) को ब्रह्म-क्षत्रिय भी कहा जाता था, क्योंकि वह जन्म से ब्राह्मण अवश्य थे किंतु कर्म से क्षत्रिय थे, क्योंकि उनके सभी गुण जैसे युद्ध-कला में निपुणता, वीरता, शूरता, पराक्रम और निर्भयता आदि क्षत्रियों वाले ही थे।
पुराणों के अनुसार परशुराम जी (Parshuram Ji) ने पृथ्वी से अभिमानी और उद्दंड हैहय वंशी क्षत्रियों का २१ बार विनाश किया था।
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