भगवान बद्रीविशाल की चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में शालीग्रामशिला मूर्ति की पूजा बद्रीनाथ मंदिर में होती है | आदि पुराणों के अनुसार प्रस्तुर बद्रीविशाल की मूर्ति स्वयं देवताओं ने नारदकुंड से निकालकर यहाँ स्तापित की और पूजा अर्चना और तपस्या की | जब बौद्ध धर्म के अनुयायी इस स्थान पर आये तो उन्होंने इसे बुद्ध की मूर्ति समझ कर इसकी पूजा शुरू कर दी | शंकराचार्य की सनातन धर्म प्रचार यात्रा के दौरान बौद्ध धर्म के अनुयायी तिब्बत जाते हुए इस मूर्ति को अलकनंदा नदी में डाल कर चले गये | आदिगुरू शंकराचार्य ने इस मूर्ति को निकालकर पुनः स्थापित किया और बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण करवाया | समय बीतने पर यह मूर्ति पुनः स्थान्तरित हो गयी | रामानुजाचार्य ने पुनः इसे तप्तकुंड से निकालकर इसकी स्थापना की |
इस मंदिर की कहानी में कहा गया है कि जब भगवान विष्णु योगध्यान मुद्रा में तपस्या में लीन थे तो बहुत अधिक हिमपात होने लगा। भगवान विष्णु (Bhagwan Shri Vishnu) हिम में पूरी तरह डूब चुके थे। उनकी इस दशा को देख कर माता लक्ष्मी (Mata Lakshmi) का हृदय द्रवित हो उठा और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो कर एक बेर (बदरी) के वृक्ष का रूप ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने लगीं। माता लक्ष्मी, भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिम से बचाने की कठोर तपस्या में जुट गयीं। कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं, तब उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा कि हे देवी ! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है, इसलिए आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा और क्योंकि तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है सो आज से मुझे बद्री के नाथ - बद्रीनाथ के नाम से जाना जायेगा। इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बद्रीनाथ (Badrinath) पड़ा। जिस स्थान पर भगवान ने तप किया था, वही पवित्र-स्थल आज तप्त-कुण्ड के नाम से विख्यात है और उनके तप के रूप में आज भी उस कुण्ड में हर मौसम में गर्म पानी उपलब्ध रहता है।
बद्रीनाथ मंदिर परिसर (Badrinath Mandir Parisar)
बद्रीनाथ मंदिर परिसर बहुत ही आकर्षक और सुन्दर है | समस्त मंदिर तीन भागों में विभाजित है | गर्भगृह, दर्शनमंडप और सभामंडप | परिसर में कुल १५ मूर्तियाँ हैं जिसमे प्रमुख भगवान बद्रीविशाल की 1 मीटर काले पत्थर की प्रतिमा मंदिर में विराजमान है | उनके बगल में कुबेर लक्ष्मी और नारायण की मूर्तियाँ स्थापित हैं |
चारों धामों में प्रमुख बद्रीनाथ धाम का हिन्दू धर्म में बहुत बड़ा महत्त्व है | भगवान नर-नारायण (Nar-Narayan) विग्रह की पूजा यहाँ होती है | मंदिर में एक अखंड दीप जलता है जो अचल ज्ञानज्योति का प्रतीक है | सभी श्रद्धालु यहाँ स्थित तप्तकुंड में स्नान करने के बाद भगवान बद्रीविशाल के दर्शन करते हैं | मंदिर में मिश्री, गिरी का गोला, चने की कच्ची दाल और वनतुलसी की माला आदि प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है |
बद्रीनाथ धाम से जुड़े रोचक प्रश्न और उत्तर
प्रश्न: बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास क्या है?
उत्तर: बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास बहुत प्राचीन है। यह मंदिर आदि पुराणों के अनुसार स्थापित हुआ था और भगवान बद्रीविशाल की शालीग्रामशिला मूर्ति की पूजा होती है।
प्रश्न: बद्रीनाथ मंदिर के नाम की उत्पत्ति कैसे हुई?
उत्तर: माता लक्ष्मी के तप के दौरान, भगवान विष्णु ने बद्री वृक्ष के रूप में तप किया था, जिससे मंदिर का नाम 'बद्रीनाथ' पड़ा।
प्रश्न: बद्रीनाथ मंदिर में किस मूर्ति की पूजा होती है और उसकी प्राचीनता क्या है?
उत्तर: बद्रीनाथ मंदिर में भगवान बद्रीविशाल की पूजा होती है, जो कि एक शालीग्रामशिला मूर्ति है और उसकी प्राचीनता पुराणों के अनुसार है।
प्रश्न: बद्रीनाथ मंदिर का धार्मिक महत्व क्या है और यहाँ कौन-कौन सी पूजा-अर्चना होती है?
उत्तर: बद्रीनाथ मंदिर हिन्दू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण है, और यहाँ प्रमुख रूप से भगवान बद्रीविशाल की पूजा होती है, साथ ही देवी लक्ष्मी और नारायण की मूर्तियों की भी पूजा होती है।
प्रश्न: बद्रीनाथ मंदिर के परिसर में कौन-कौन सी मूर्तियाँ स्थापित हैं और उनकी विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर: मंदिर परिसर में गर्भगृह, दर्शनमंडप, और सभामंडप में कई मूर्तियाँ हैं, जिसमें प्रमुखतः भगवान बद्रीविशाल की प्रतिमा, देवी लक्ष्मी और कुबेर की मूर्तियाँ शामिल हैं।
प्रश्न: बद्रीनाथ मंदिर के चारों धामों के साथ क्या संबंध है और उनका महत्व क्या है?
उत्तर: बद्रीनाथ मंदिर चार धामों में से एक है और हिन्दू धर्म में इसका बहुत बड़ा महत्व है। यहाँ पर भगवान नारायण की पूजा होती है और यह धार्मिक यात्रा का महत्वपूर्ण श्रेणीकरण है।
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