वट पूर्णिमा (Vat Purnima) को ज्येष्ठ पूर्णिमा (Jyestha Purnima) के नाम से जाना जाता है। यह त्यौहार ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र और घर-परिवार में सुख सौभाग्य के लिए इस व्रत को रखती है। इस दिन व्रत के साथ बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। यह त्यौहार प्रमुख रूप से उत्तर भारत के सभी राज्यों में, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात और महाराष्ट्र में मनाया जाता है।
यह पर्व इस बार 21 जून 2024 को पड़ रहा है। तिथि की शुरुआत 5 जून 2024 को सायं 7 बजकर 54 मिनट पर होगी और समाप्ति 6 जून को सायं 6 बजकर 7 मिनट पर होगी। बहुत सारे लोग इस त्यौहार को पूर्णिमा की जगह अमावस्या को मनाते हैं। जो इस बार 6 जून को पड़ रहा है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सावित्री नाम की एक महिला की निष्ठा और पतिव्रत धर्म देखकर यमराज ने उसके पति को जीवनदान दिया था। कहा जाता है कि जो महिला वट पूर्णिमा का व्रत रखती है उसके पति और घरवालों पर कभी कोई संकट नहीं आता। साथ ही अकाल मृत्यु और भय से छुटकारा मिलता है।
मौसमी फल, खरबूजा, गंगाजल, गेहूं के आटे की पूड़ियां, गेहूं के आटे के बने गुलगुले, रोली, मिट्टी का दीपक, फूल, सिंदूर, धूप, सोलह शृंगार की सामाग्री, अक्षत, रक्षा सूत्र, चना, पान, सुपारी, नारियल, कपड़ा, मिठाई, चावल और हल्दी।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, अश्वपति (Ashvapati) नाम के एक राजा थे। उनकी एक ही संतान थी। जिसका नाम सावित्री (Savitri) था। राजा ने अपनी बेटी का विवाह सत्यवान (Satyawan) से कर दिया। विवाह के समय ही राजा अश्वपति से नारद मुनि (Narada Muni) ने सत्यवान के अल्पायु होने के बारे में बता दिया था। नारद मुनि की यह बात सुनकर अश्वपति डर गए और उन्होंने सावित्री से दूसरा वर चुनने के लिए कहा। लेकिन बेटी सावित्री ने अपने पिता से सत्यवान के साथ ही विवाह करने का आग्रह किया। इसके बाद सावित्री का विवाह सत्यवान के साथ कर दिया गया।
सावित्री अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखने लगी। जब सत्यवान का आखिरी दिन समीप आया तब सावित्री अपने पति सत्यवान के साथ वन में लकड़ी काटने के लिए गई हुई थी। सत्यवान लकड़ी काटने के लिए पेड़ पर चढ़ने लगे। तभी उनके सिर में तेज दर्द हुआ। दर्द से कराहते हुए सत्यवान पेड़ से उतरे और बरगद के पेड़ की छाया में अपनी पत्नी सावित्री की गोद में लेट गए। कुछ देर बाद सावित्री ने देखा कि यमराज उसके पति के प्राण लेने आए हैं। जब यमराज पेड़ लेकर जाने लगे तब सावित्री भी उनके साथ चलने लगी। यमराज ने सावित्री को बहुत मना किया लेकिन सावित्री के प्यार और समर्पण के सामने उनकी एक न चली।
सावित्री के समर्पण को देखते हुए यमराज ने उससे तीन वर मांगने को कहा। तब सावित्री ने सौ पुत्रों की माता बनने का वरदान मांग लिया। लेकिन यह वरदान तभी फलीभूत हो सकता था जब उसके पति जीवित होते। अब यमराज सावित्री को दिए हुए वचन से बंध गए। अपने वचन का मान रखने के लिए यमराज ने सावित्री के पति सत्यवान के प्राण लौटा दिए। प्राण लौटाने के बाद सत्यवान फिर से जीवित हो उठे। तब से सुहागिन महिलाएं वट पूर्णिमा के दिन ये व्रत रखती हैं।
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