विश्वकर्मा जयंती के आने पर शिल्पकार, वास्तुकार एवं दिव्य इंजीनियर के रूप में हम भगवान विश्वकर्मा को याद करते हैं लेकिन इस बात से हम अनभिज्ञ हैं कि आज दुनिया में जो कुछ भी आकर्षण देख रहे हैं, वो सब विश्वकर्मा जी और उनके परिवार की ही देन हैं। आज हम इस बात की कल्पना भी करें कि यदि भगवान विश्वकर्मा का अस्तित्व न होता तो आज की दुनिया उसी तरह की होती जिस तरह से बिना रंग वाला, बिना आकार प्रकार का चित्र। इस चित्र को कौन पसंद करता। इसलिये हमें भगवान विश्वकर्मा की जयंती के अवसर पर पूजा-अर्चना करके उनका आभार प्रकट करना चाहिये।
प्राचीन ग्रंथों एवं पुराणों के अनुसार ब्रह्मा (Bhagwan Brahma) के सातवें पुत्र वास्तुदेव की संतान हैं भगवान विश्वकर्मा (Bhagwan Vishwakarma)। कहा जाता है कि भगवान विश्वकर्मा प्रथम शिल्पी और इंजीनियर हैं। पुराणों में वर्णन है कि सृष्टि के सृजन के बाद उसको सजाने का काम भगवान विश्वकर्मा ने किया है।
पुराणों और ग्रंथों की मानें तो भगवान विश्वकर्मा (Lord Vishwakarma) ने ही सृष्टि के सृजनकाल में स्थापित देवों की राजधानियों के महलों का निर्माण किया था। भगवान विश्वकर्मा की शिल्पकला की अनूठी बात यह रही है कि अप्रतिम चित्रकारी वाली इमारतें पलक झपकते ही बनती थी। सतयुग में स्वर्गलोग, त्रेता युग की लंका, द्वापर की द्वारिका (Dwapar ki Dwarika) और हस्तिनापुर भगवान विश्वकर्मा (Bhagwan Vishwakarma) द्वारा ही बनाया गया था। स्वर्गलोक देवताओं के पावन स्थान के रूप में जाना जाता है। लंका को रावण की नगरी (Ravan ki Nagari Lanka) के रूप में जाना जाता है।
द्वारिका श्रीकृष्ण (Dwarkadhish Shri Krishna) की नगरी के रूप में पहचानी जाती है। हस्तिनापुर महाभारत काल में पांडवों की राजधानी रही है। इसके अलावा भगवान श्रीकृष्ण से जब सहायता मांगने उनके बालसखा सुदामा गये तो विश्वकर्मा जी ने ही पलक झपकते ही सुदामापुरी (Sudamapuri) का निर्माण किया था।
इन दैवीय एवं पुरातन भवनों के निर्माण के अलावा भगवान विश्वकर्मा ने दिव्य हथियारों का निर्माण भी किया है। मान्यता है कि भगवान शिव (Bhagwan Bholenath) का विनाशकारी त्रिशूल और भगवान विष्णु का अचूक संहारक सुदर्शन चक्र भी भगवान विश्वकर्मा जी ने ही बनाया था। उनके बनाये गये शस्त्र अकाट्य थे। देवों और असुरों के अनेक संग्रामों में उनके ही अस्त्रों ने देवों को विजय दिलायी। उनके शस्त्रों की मारक क्षमता से असुर सदैव भयभीत रहते थे। पूरे विश्व को अपनी कला से सज्जित करने वाले भगवान विश्वकर्मा जी को देवपद प्राप्त है और इसीलिये प्रतिवर्ष विश्वकर्मा की जयंती (Vishwakarma Jayanti) धूमधाम एवं पूर्ण श्रद्धा के साथ पूजा-अर्चना करके मनायी जाती है।
भगवान विश्वकर्मा के जन्म के बारे में प्राचीन ग्रंथों में जो वर्णन मिलता है। उसका विवरण इस प्रकार है:- सृष्टि के संचालक त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश में से ब्रह्माजी के पुत्र धर्म हुए और धर्म के पुत्र वास्तुदेव हुए। वास्तुदेव ब्रह्माजी के सातवें पुत्र थे। जो आज के वास्तुशास्त्र (शिल्पशास्त्र) के प्रवर्तक थे। धर्मदेव का विवाह वस्तु नामक स्त्री से हुआ था। वास्तुदेव इन्हीं धर्मदेव और वस्तु की संतान थे।
वास्तुदेव का विवाह अंगिरसी नामक स्त्री से हुआ था। भगवान विश्वकर्मा (Bhagwan Vishwakarma) इन्हीं दोनों के संतान थे। पिता की तरह भगवान विश्वकर्मा शिल्पकला के अद्वितीय आचार्य बने और सृष्टि को सज्जित किया।
मान्यता है कि अन्य देवी-देवताओं के समान ही भगवान विश्वकर्मा के भी अनेकों रूप हैं। भगवान विश्वकर्मा को दो भुजाओं, चार भुजाधारी और दसभुजाधारी बताया गया है। इसके अलावा भगवान विश्वकर्मा को एक मुखी, चार मुखी, पंचमुखी बताया गया है। इन रूप में भगवान विश्वकर्मा की अलग-अलग विधि से पूजा-अर्चना की जाती है।
माना जाता है कि भगवान विश्वकर्मा के पांच पुत्र हैं। इन पुत्रों के नाम शिल्पी, दैवज्ञ, त्वष्टा, मय और मनु हैं। यह भी बताया गया है कि ये पांचों पुत्र अलग-अलग शिल्प विधा में पारंगत रहे हैं। इन सभी ने अपने-अपने क्षेत्र में अनेक अनूठे अविष्कार करके विश्व को अचंभित कर दिया है। मान्यताओं के अनुसार दैवज्ञ को सोने-चांदी के क्षेत्र में दक्षता प्राप्त थी। मय को लकड़ी या काष्ठ शिल्प में विशेष दक्षता हासिल थी। मनु लोहे के क्षेत्र में पारंगत थे, त्वष्टा कांसे और तांबे के क्षेत्र में सिद्धहस्त थे और शिल्पी ईंट एवं भवन सामग्री के विशेषज्ञ थे।
भगवान विश्वकर्मा की महानता का बखान किया जाये तो यही कहा जा सकता है कि उनके बिना सष्टि का श्रृंगार अधूरा है। इसी बात से जाना जा सकता है कि भगवान विश्वकर्मा कितने महान हैं और उनका सृष्टि और विश्व में कितना ऊंचा स्थान है। आज के युग में तो भगवान विश्वकर्मा की सबसे अधिक जरूरत है, जहां हर इंसान आधुनिकता के दौर में फैशन व स्टेटस को तलाश रहा है। आज जो सबकी इस तरह की तलाश पूरी हो रही है, ये सब भगवान विश्वकर्मा की ही देन है। इसलिये आज के युग में सभी को विश्वकर्मा जयंती (Vishwakarma Jayanti) मनाना चाहिये और भगवान विश्वकर्मा को धन्यवाद भी देना चाहिये।
प्रश्न: भगवान विश्वकर्मा के कितने पुत्र थे और उनके क्या-क्या नाम थे?
उत्तर: भगवान विश्वकर्मा के पाँच पुत्र थे - शिल्पी, दैवज्ञ, त्वष्टा, मय, और मनु।
प्रश्न: विश्वकर्मा जी के कितने रूप बताए गए हैं और उनमें कौन-कौन से हैं?
उत्तर: मान्यता है कि विश्वकर्मा जी के तीन रूप बताए गए हैं - दो भुजाओं वाले, चार भुजाधारी, और दसभुजाधारी।
प्रश्न : भगवान विश्वकर्मा के कौन-कौन से शस्त्र बनाए गए थे और उनका क्या महत्व था?
उत्तर: भगवान विश्वकर्मा ने भगवान शिव के विनाशकारी त्रिशूल और भगवान विष्णु के अचूक संहारक सुदर्शन चक्र बनाए थे, जिनका महत्व अत्यधिक था।
प्रश्न: भगवान विश्वकर्मा के पुत्रों के नाम और उनके क्षेत्र क्या-क्या थे?
उत्तर: भगवान विश्वकर्मा के पुत्रों के नाम थे - शिल्पी, दैवज्ञ, त्वष्टा, मय, और मनु। उनमें दैवज्ञ को सोने-चांदी के क्षेत्र में, मय को लकड़ी और भवन निर्माण में, मनु को लोहे के क्षेत्र में, त्वष्टा को कांसे और तांबे के क्षेत्र में सिद्धहस्त थे।
पूरब पश्चिम विशेष
0 Comments:
Leave a Reply