शनि आरती (Shani Aarti) की शक्ति और शनि देव जी (Shani Dev Ji) की महिमा अपरंपार है। शनिदेव को सबसे शक्तिशाली और नौ ग्रहों का स्वामी माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के शनि कर्म फल दाता (Karm Phal Data) है और कर्मों का हिसाब करते है और उसी अनुसार व्यक्ति को फल देते है। शनि आरती (Shani Aarti) श्री शनिदेव जी (Shani Dev Ji) की आराधना है।
शनि देव जी (Shani Dev Ji) की पूजा आरती करने से शनि महाराज का आशीर्वाद मिलता है। शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित माना गया है। इस दिन शनि देव जी (Shani Dev Ji) की स्तुति करने से शनि देव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
पूजा करते समय शनिदेव की प्रतिमा के सामने खड़े होकर कभी प्रार्थना नहीं करनी चाहिए। इतना ही नहीं उनकी आंखों में भी नहीं देखना चाहिए। ऐसा करने से उनकी दृष्टि सीधे आप पर सकती है और आप अनजाने ही शनिदेव के कोप के शिकार हो जाते हैं।
हर व्यक्ति के सभी छोटे या बड़े, अच्छे और बुरे कर्मो पर शनिदेव की हमेशा नजर रहती हैI इसलिए हर व्यक्ति को सदैव शनिदेव जी (Shani Dev Ji) की पूजा और शनि आरती (Shani Aarti) करनी चाहिए ताकि उनकी कुदृष्टि से बच सकेI
शनि देव पर आखिर क्यों चढ़ाया जाता है सरसों का तेल (Why is mustard oil offered to Shani Dev?)
शनि देव (Shani Dev) पर सरसों का तेल चढाने की परम्परा महाबली हनुमान जी (Mahabali Hanuman) ने की थी, एक पौराणिक कथा के अनुसार महाबली हनुमान श्री राम (Shree Ram) के ध्यान में लीन थे। तभी वहाँ आकर शनि देव उन्हें युद्ध के लिए ललकारने लगे थे और शनि देव ने कहा तुम तो क्या तुम्हारे श्री राम भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते तब क्रोध में आकर हनुमान जी ने शनि देव को अपनी पूंछ में लपेट कर पहाड़ों में फेंक दिया था, और हनुमान जी के प्रहार से शनि देव जी घायल हो चुके थे और उनके शरीर पर बहुत जगह घाव बन चुके थे, उन्हें बहुत पीढ़ा होने लगी थी, महाबली हनुमान जी से उनकी पीड़ा देखी नहीं गयी, उन्हें पीढ़ा से मुक्त करने के लिए हनुमान जी ने उनके शरीर पर सरसों का तेल लगाया, उसके पश्चात् शनि देव को आराम मिला , तब शनि देव ने यह कहा की जो भी उन्हें सच्चे दिल से सरसों का तेल चढ़ाएगा उसको सभी कष्टों से छुटकारा मिलेगा। तभी से शनि देव पर तेल चढ़ाने की परम्परा शुरू हुई।
अपने आराध्य की आरती हमेशा चौदह बार आरती करनी चाहिए। चार बार चरणों से, दो बार नाभि से, एक बार मुख से तथा सात बार पूरे शरीर की आरती करनी चाहिए। आरती की बत्तियां 1, 5, 7 यानी विषम संख्या में ही होनी चाहिए।
भक्तजनों आइए आपको शनि देव जी (Shani Dev Ji) की आरती संपूर्ण हिंदी अर्थ सहित बताते है।
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥
जय जय श्री शनि देव....
अर्थ: शनि देव जी (Shani Dev Ji) महाराज आपकी जय हो! आपकी जय हो! आप सदैव अपने भक्तों का हित करते है। आप भगवान सूर्य और छाया माता के पुत्र है। हे श्री शनि देव जी (Shani Dev Ji) महाराज, आपकी जय हो।
श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी।
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥
जय जय श्री शनि देव....
हे शनि देव जी महाराज, आपका श्याम रंग है और आपकी बड़ी तेज और वक्र दृष्टि है। आपकी चार भुजाएं है जिनमें आपने अस्त्र-शस्त्र धारण किए हुए है। हे नाथ, आप नीले रंग के वस्त्र धारण करते है और कौवे की सवारी करते है। हे श्री शनि देव जी (Shani Dev Ji) महाराज, आपकी जय हो।
क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥
जय जय श्री शनि देव....
हे शनि महाराज, आपके माथे पर अति सुंदर मुकुट सजता है और मोतियों की माला आपके गले की शोभा बढ़ा रही है। हे श्री शनि देव जी (Shani Dev Ji) महाराज, आपकी जय हो।
मोदक मिष्ठान पान चढ़त है सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥
जय जय श्री शनि देव....
अर्थ: हे शनिदेव आपको लड्डू, मिठाई, पान और सुपारी चढ़ाएं जाते है। आप पर चढ़ाई जाने वाली वस्तुओं में लोहा, काला तिल, सरसों का तेल, उड़द की दाल के दाने, आपको अत्यंत प्रिय है। हे श्री शनि देव जी (Shani Dev Ji) महाराज, आपकी जय हो।
देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण है तुम्हारी॥
जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।।
अर्थ: भगवान शनिदेव देवता, दानव, ऋषि मुनि, नर और नारी सभी आपका सुमिरन करते है। हे विश्वनाथ, सभी भक्तजन आपका ध्यान धरते है और आपकी शरण में रहना चाहते है। हे श्री शनि देव जी (Shani Dev Ji) महाराज, आपकी जय हो।
।। इति श्री शनि आरती (Shani Aarti) संपूर्ण ।।
भक्तों उम्मीद करते हैं कि शनि देव जी की आरती Shani Dev Ji ki Aarti )पढ़ कर आपको आनंद आया होगा। शनि आरती (Shani Aarti) के अलावा शनि स्त्रोत, शनि चालीसा और शनि मंत्रों का जाप भी भक्तों को मुश्किलों से और शनि दशा से बचाता है और उनका जीवन सुखमय करता है।
शनिदेव का जिक्र हो और शनि दशा का जिक्र ना हो यह तो संभव ही नहीं है। शनि दशा, शनि देव का सबसे बड़ा प्रकोप है जो सवा पहर, ढ़ाई साल (ढईया) और साढ़े सात साल (साढ़े साती) के लिए लगती है।
शनि देव जी (Shani Dev Ji) जिस पर प्रसन्न हो जाते है, उसके सारे बिगड़े काम बन जाते है और जिस पर बिगड़ जाएं उसके बनते हुए काम भी बिगड़ जाते है। व्यक्ति को कर्मो के अनुसार ही शनि दशा का कष्ट भोगना पड़ता है और वह समय उस व्यक्ति के जीवन का सबसे ज्यादा मुश्किलों का समय होता है।
शनि दशा का समय आदमी के जीवन का सबसे मुश्किल समय होता है। शनि व्रत कथा में भी विदित है कि केवल सवा पहर की शनि दशा ने ही उस व्यक्ति को मौत के मुंह तक पहुंचा दिया था और जब शनि दशा खत्म हुई थी तो व्यक्ति को ढेर सारा धन और सम्मान मिला। शनि की साढ़ेसाती तो बड़ों-बड़ों का विनाश कर देती है। कहा जाता है कि राजा राम का बनवास और रावण का विनाश शनि की साढ़ेसाती के कारण ही हुआ था।
अधिकांश लोग शनिदेव से डरते है और उनकी पूजा शनि दशा से बचने के लिए करते है। लेकिन असलियत में शनि देव न्याय के देवता है जो इंसानो को उनके कर्मों के अनुसार फल देते है।
किसी भी देवी देवता की पूजा करने के बाद उनकी श्रद्धा पूर्वक आरती का शास्त्रोंक्त विधान है। आरती हिन्दू धर्म की पूजा परंपरा का एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है।
शनि आरती (Shani Aarti) करने से शनि देव भगवान प्रसन्न होते है और मनचाहा वरदान देते है।
शनिदेव की आरती (Shani Dev ki Aarti) करने से जातक पर पाप ग्रहों का प्रभाव कम होता है।
शनि आरती (Shani Aarti) करने से जातक के जीवन की सभी कठिनाइयां दूर होती है।
शनि देव जी (Shani Dev Ji) की आरती और महिमा का गुणगान करने से जातक को भगवान शनि की कृपा प्राप्त होती है।
हमेशा किसी भी पूजा या प्रार्थना की समाप्ति पर ही आरती करना सर्वश्रेष्ठ होता है।
जो भी व्यक्ति नित्य शनिदेव का ध्यान करता है, शनि कथा कहता और सुनता है, उनकी पूजा-अर्चना और आरती करता है, रोजाना चीटियों को दाना डालता है उसे शनि दशा में भी कष्ट नहीं होता और शनि महाराज उसके सारे मनोरथ पूर्ण करते है।
शनि देव की आरती से जुड़े रोचक प्रश्न और उत्तर
1. शनि देव की महिमा क्या है?
उत्तर: शनि देव जी को नौ ग्रहों का स्वामी और सबसे शक्तिशाली देवता माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शनि देव कर्म फल दाता (Karm Phal Data) हैं और व्यक्ति के कर्मों का हिसाब कर उसी के अनुसार फल देते हैं।
2. शनि आरती का क्या महत्व है?
उत्तर: शनि आरती श्री शनिदेव जी की आराधना का एक महत्वपूर्ण तरीका है। इसे करने से शनि महाराज का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनके विशेष कृपा से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर होते हैं।
3. शनिवार को शनि देव जी की पूजा क्यों की जाती है?
उत्तर: शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित माना गया है। इस दिन शनि देव जी की स्तुति करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति के जीवन की कठिनाइयाँ दूर होती हैं।
4. शनि देव जी की प्रतिमा के सामने खड़े होकर प्रार्थना क्यों नहीं करनी चाहिए?
उत्तर: पूजा करते समय शनिदेव की प्रतिमा के सामने खड़े होकर प्रार्थना नहीं करनी चाहिए और उनकी आंखों में भी नहीं देखना चाहिए। ऐसा करने से उनकी दृष्टि सीधे आप पर पड़ सकती है जिससे आप अनजाने ही शनिदेव के कोप के शिकार हो सकते हैं।
5. शनि देव पर सरसों का तेल क्यों चढ़ाया जाता है?
उत्तर: शनि देव पर सरसों का तेल चढ़ाने की परम्परा महाबली हनुमान जी ने की थी। एक पौराणिक कथा के अनुसार, शनि देव जी को हनुमान जी ने सरसों का तेल लगाया था जिससे उनकी पीड़ा कम हो गई थी। तब से शनि देव पर तेल चढ़ाने की परम्परा शुरू हुई।
6. शनि आरती का नियम क्या है?
उत्तर: शनि आरती करते समय चौदह बार आरती करनी चाहिए। चार बार चरणों से, दो बार नाभि से, एक बार मुख से तथा सात बार पूरे शरीर की आरती करनी चाहिए। आरती की बत्तियां विषम संख्या में होनी चाहिए।
7. शनि दशा क्या है और इसका प्रभाव क्या होता है?
उत्तर: शनि दशा शनि देव का प्रकोप होता है जो सवा पहर, ढ़ाई साल (ढ़इया) और साढ़े सात साल (साढ़ेसाती) के लिए लगती है। इस दौरान व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार कष्ट भोगना पड़ता है और यह समय व्यक्ति के जीवन का सबसे मुश्किल समय होता है।
8. शनि आरती की महिमा क्या है?
उत्तर: शनि आरती करने से शनि देव भगवान प्रसन्न होते हैं और मनचाहा वरदान देते हैं। शनि आरती करने से जातक पर पाप ग्रहों का प्रभाव कम होता है और जीवन की सभी कठिनाइयाँ दूर होती हैं। शनि देव जी की आरती और महिमा का गुणगान करने से व्यक्ति को शनि की कृपा प्राप्त होती है।
9. शनि देव की पूजा और आरती से क्या लाभ होता है?
उत्तर: जो भी व्यक्ति नित्य शनिदेव का ध्यान करता है, शनि कथा कहता और सुनता है, उनकी पूजा-अर्चना और आरती करता है, रोजाना चीटियों को दाना डालता है, उसे शनि दशा में भी कष्ट नहीं होता और शनि महाराज उसके सारे मनोरथ पूर्ण करते हैं।
पूरब पश्चिम विशेष
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