हर साल भाद्रपद माह की शुक्ल पंचमी को ऋषि पंचमी (Rishi Panchami) का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) के एक दिन बाद और हरतालिका तीज (Hartalika Teej) के दो दिन बाद मनाया जाता है। यह पर्व भारत के हिमालय के तराई वाले क्षेत्रों में अत्यधिक लोकप्रिय है। नेपाली हिन्दू इस त्यौहार को बड़े धूमधाम के साथ मनाते हैं।
यह व्रत भारतवर्ष की पावन धरा में पैदा हुए साधु-संतों और ऋषि मुनियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है। ऋषि पंचमी का पुण्यदायी व्रत पापों का नाश करने वाला और फल प्रदान करने वाला माना जाता है। यह त्यौहार उपवास के लिए एक महत्वपूर्ण आधार है जो पूरी तरह से साधु-संतों और ऋषि मुनियों के महान कार्यों के लिए समर्पित है। ऋषि पंचमी का पर्व सभी के लिए लाभकारी होता है, लेकिन महिलाओं द्वारा इस व्रत को विशेष रूप से मनाया जाता है। ऋषि पंचमी का त्यौहार एक महिला के लिए पति के प्रति अपनी आस्था, कृतज्ञता, विश्वास और सम्मान व्यक्त करने का एक तरीका है। जो भी इस व्रत को करता है उसके द्वारा अनजाने में हुए पाप भी नष्ट हो जाते हैं।
साल 2024 में ऋषि पंचमी 8 सितंबर को मनाई जाएगी। इस व्रत की पूजा का मुहूर्त प्रातः 11 बजकर 6 मिनट से दोपहर 1 बजकर 33 मिनट तक रहेगा।
हिन्दू धर्म में स्वच्छ और पवित्र होना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसलिए मानव के शरीर और आत्मा को शुद्ध रखने के लिए कई तरह के नियम कायदे बनाए गए हैं। हिंदू धर्म में मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को अशुद्ध माना जाता है, इसलिए इस अवधि के दौरान उन्हें किसी भी तरह की पूजा पाठ की अनुमति नहीं होती है। इन दिशानिर्देशों की उपेक्षा करने से रजस्वला दोष बढ़ता है। इस दोष से ही छुटकारा पाने के लिए महिलाओं द्वारा ऋषि पंचमी का व्रत रखा जाता है।
एक राज्य में उत्तक नामक ब्राह्मण और उसकी पत्नी एक साथ रहते थे। उनके परिवार में एक बेटा और एक बेटी थी। ब्राह्मण ने अपनी बेटी का विवाह एक अच्छे और प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में किया। लेकिन कुछ समय बीतने के बाद ही लड़की के पति की मृत्यु हो गई। इस पर ब्राह्मण दंपति बहुत ज्यादा दु:खी हुए और गंगा के किनारे कुटिया बनाकर रहने लगे। एक दिन ब्राह्मण की बेटी का सारा शरीर कीड़ों से भर गया। यह बात उसने अपनी माँ को बताई। तब उसकी माँ ने अपने पति से पूछा-हे प्राणनाथ! मेरी कन्या की यह गति होने का क्या कारण है?
ब्राह्मण ने समाधि द्वारा इस घटना का पता लगया और बताया- पूर्व जन्म में यह कन्या ब्राह्मणी थी। इसने रजस्वला होते ही बर्तनों को छू लिया था। इस जन्म में भी इसने कुछ लोगों से प्रभावित होकर ऋषि पंचमी का व्रत नहीं किया है। इसलिए इसके शरीर में कीड़े पड़ गए हैं। ब्राह्मण ने कहा कि धर्म शास्त्रों में मान्यता है कि रजस्वला स्त्री पहले दिन चांडालिनी, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी तथा तीसरे दिन धोबिन के समान अपवित्र होती है। वह चौथे दिन स्नान करने के उपरांत शुद्ध होती है। यदि यह शुद्ध मन से अब भी ऋषि पंचमी का व्रत करे तो इसके सारे दु:ख स्वतः की समाप्त हो जाएंगे और अगले जन्म में अटल सौभाग्य प्राप्त करेगी। पिता के कहे अनुसार पुत्री ने विधि पूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत एवं पूजन किया। व्रत के प्रभाव से वह सारे दु:खों से मुक्त हो गई। अगले जन्म में उसे अटल सौभाग्य सहित अक्षय सुखों का भोग मिला।
प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न: ऋषि पंचमी कब है?
उत्तर: साल 2024 में ऋषि पंचमी 8 सितंबर को मनाई जाएगी।
प्रश्न: ऋषि पंचमी मुख्यतः किसके द्वारा मनाई जाती है?
उत्तर: ऋषि पंचमी मुख्यतः महिलाओं के द्वारा मनाई जाती है।
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