बजरंग बाण (Bajrang Baan) एक अत्यंत शक्तिशाली स्तुति है, जिसे गोस्वामी तुलसीदास जी (Goswami Tulsidas) ने रचा था। यह स्तुति हनुमान जी (Hanumanji) की कृपा प्राप्त करने और जीवन की बाधाओं को दूर करने के लिए की जाती है। इसका पाठ विशेष रूप से शत्रु बाधा, भय, रोग, और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति के लिए प्रभावी माना जाता है।
दोहा:
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सन्मान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥
भावार्थ:
जो व्यक्ति सच्चे हृदय से प्रेम, विश्वास और श्रद्धा के साथ श्री हनुमान जी की विनम्रता पूर्वक पूजा-अर्चना करता है और उन्हें आदर व सम्मान प्रदान करता है, उनके सभी कार्य सफल हो जाते हैं। हनुमान जी उनकी सभी शुभ इच्छाओं और कार्यों को पूर्ण करते हैं।
चौपाई:
जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज विलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
भावार्थ:
हे हनुमान जी, आपकी जय हो! आप संतों और भक्तों के हितकारी हैं। कृपया हमारी विनम्र प्रार्थना सुन लीजिए।
अपने भक्तों के कार्यों में विलंब न करें। कृपया शीघ्रता से सहायता प्रदान करें और महान आनंद एवं सुख का अनुभव कराएं।
जैसे कूदि सिंधु महिपारा, सुरसा बदन पैठि बिस्तारा ॥
आगे जाय लंकिनी रोका, मारेहु लात गई सुरलोका ॥
भावार्थ:
हनुमान जी ने अपनी अद्भुत शक्ति और दृढ़ निश्चय से समुद्र को पार किया और भूमि (लंका) पर पहुँचे। जब सुरसा (राक्षसी) ने उन्हें रोकने के लिए अपना विशाल मुख फैलाया, तो अपनी चतुराई और कुशलता से हनुमान जी ने उसके मुख में प्रवेश कर वापस बाहर निकलकर उसे संतुष्ट किया।
आगे जब लंका की द्वारपालिनी लंकिनी ने उन्हें रोकने की कोशिश की, तो उन्होंने एक ही लात से उसे परास्त कर दिया। लंकिनी को तुरंत अहसास हुआ कि ये साधारण वानर नहीं हैं, बल्कि कोई दिव्य शक्ति हैं।
जाय बिभीषन को सुख दीन्हा, सीता निरखि परमपद लीन्हा ॥
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा, अति आतुर जमकातर तोरा ॥
भावार्थ:
हनुमान जी ने लंका पहुँचकर विभीषण को परम सुख प्रदान किया, क्योंकि विभीषण ने धर्म का पालन करते हुए श्री राम के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण प्रकट किया। हनुमान जी ने माता सीता के दर्शन किए और उनकी कुशलता का संदेश श्री राम तक पहुँचाकर अपने महान कर्तव्य को पूर्ण किया।
लंका में अशोक वाटिका को नष्ट किया और समुद्र के बीच अपने शत्रुओं को भयभीत कर दिया। हनुमान जी की अद्भुत शक्ति से यमराज के दूत और राक्षस अत्यधिक भयभीत हो गए।
अक्षय कुमार मारि संहारा, लूम लपेटि लंक को जारा ॥
लाह समान लंक जरि गई, जय जय धुनि सुरपुर नभ भई ॥
भावार्थ:
हनुमान जी ने रावण के पुत्र अक्षय कुमार को युद्ध में पराजित कर उसका वध कर दिया। इसके बाद अपनी पूंछ में आग लगाकर पूरी लंका को जलाकर राख कर दिया।
लंका जलकर ऐसे नष्ट हो गई जैसे लाह (लाख) आग में पिघल जाती है। इस अद्भुत पराक्रम को देखकर देवताओं ने हर्षित होकर उनकी जय-जयकार की, और स्वर्गलोक व आकाश में विजय की ध्वनि गूँज उठी।
अब बिलंब केहि कारन स्वामी, कृपा करहु उर अन्तर्यामी ॥
जय जय लखन प्राण के दाता, आतुर ह्वै दुःख करहु निपाता ॥
भावार्थ:
हे स्वामी, अब किस कारण विलंब कर रहे हैं? आप तो अन्तर्यामी हैं, कृपया कृपा करें और हमारे हृदय की पीड़ा को समझकर उसका समाधान करें।
लक्ष्मण के प्राणों के रक्षक, आपकी जय हो! कृपया शीघ्रता से आकर हमारे सभी दुखों को समाप्त करें।
जै गिरिधर जै जै सुख सागर, सुर-समूह-समरथ भटनागर ॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले, बैरिहि मारु बज्र की कीले ॥
भावार्थ:
हे गिरिधर (भगवान हनुमान), आपकी जय हो! आप सुखों के सागर हैं और देवताओं के समूह के रक्षक एवं शक्तिशाली योद्धा हैं।
हे हनुमान जी, आपकी जय हो, आप अदम्य साहस और संकल्प के प्रतीक हैं। कृपया अपने वज्र जैसी शक्ति से शत्रुओं का नाश करें और सभी बाधाओं को दूर करें।
गदा बज्र लै बैरिहिं मारो, महाराज प्रभु दास उबारो॥
ॐ कार हुंकार महाप्रभु धावो, बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो ।
भावार्थ:
हे हनुमान जी, अपनी गदा और वज्र लेकर शत्रुओं का संहार कीजिए। हे महाराज, कृपया अपने भक्तों की रक्षा करें और उन्हें सभी कष्टों से उबारें।
हे महाप्रभु, अपने दिव्य "ॐ" और हुंकार से तुरंत प्रकट होकर हमारी सहायता करें। अपनी वज्र और गदा लेकर शीघ्रता से हमारे संकट दूर करें और विलंब न करें।
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीशा, ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा ॥
सत्य होहु हरि शपथ पायके, राम दूत धरु मारु जाय के ॥
भावार्थ:
हे हनुमान जी, आप वानरों के राजा और महान पराक्रमी हैं। अपनी दिव्य शक्ति "ॐ ह्नीं" और "ॐ हुं" के प्रभाव से शत्रुओं के हृदय को भय से भर दें और उनका विनाश करें।
आप श्री हरि (राम) की शपथ पाकर अपने सत्य स्वरूप में आ जाएं। रामजी के दूत के रूप में प्रकट होकर शत्रुओं का संहार करें और धर्म की विजय स्थापित करें।
जय जय जय हनुमंत अगाधा, दुःख पावत जन केहि अपराधा ॥
पूजा जप तप नेम अचारा, नहिं जानत हौं दास तुम्हारा ॥
भावार्थ:
हे हनुमान जी, आपकी जय हो! आप असीम (अगाध) शक्ति और महानता के स्वामी हैं। जो लोग दुःखों में घिरे होते हैं, वे आपके चरणों में अपराध किए बिना मुक्ति पाते हैं।
मैं न तो पूजा, जप, तप, या किसी नेम-अचारा का ज्ञाता हूँ, बल्कि मैं तो बस आपके दास का दास हूँ। कृपया मेरी अवस्था पर कृपा करें और मुझे सुखी बनाएं।
वन उपवन मग गिरि गृह माहीं, तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं ॥
पांय परौं कर जोरि मनावौं, येहि अवसर अब केहि गोहरावौं ॥
भावार्थ:
हे हनुमान जी, आपके बल के कारण हम किसी भी स्थान पर डरने से मुक्त हैं, चाहे वह वन हो, उपवन हो, पर्वत हो, या हमारा घर हो।
अब मैं आपके चरणों में सिर झुकाकर, दोनों हाथ जोड़कर विनम्रता से प्रार्थना करता हूँ और इस अवसर पर पूरी श्रद्धा और निष्ठा से आपसे विनती करता हूँ।
जय अंजनि कुमार बलवंता, शंकर सुवन वीर हनुमंता ॥
बदन कराल काल कुल घालक, राम सहाय सदा प्रतिपालक ॥
भावार्थ:
जय हो अंजनी के पुत्र, आप महान बलशाली हैं। आप भगवान शिव के अवतार हैं और वीरता के प्रतीक हनुमान जी हैं।
आपका चेहरा अत्यंत विकराल और शक्तिशाली है, और आप काल के भी घातक माने जाते हैं। आप हमेशा श्री राम के सहाय और रक्षक हैं, जो उनके भक्तों की रक्षा और पालन करते हैं।
भूत, प्रेत, पिशाच निशाचर, अग्नि बेताल काल मारी मर ॥
इन्हें मारु, तोहि शपथ राम की, राखउ नाथ मरजाद नाम की ॥
भावार्थ:
हे हनुमान जी, भूत, प्रेत, पिशाच, निशाचर, अग्नि, बेताल और काल (समय) के सभी दुष्ट प्राणियों को मैं मारकर नष्ट कर दूंगा।
आपकी कसम है, श्रीराम की शपथ है, मैं आपकी मर्यादा और आपके नाम की रक्षा करूंगा।
जनकसुता हरि दास कहावो, ताकी शपथ बिलंब न लावो ॥
जै जै जै धुनि होत अकासा, सुमिरत होय दुसह दुःख नाशा ॥
भावार्थ:
हे हनुमान जी, आप जनकसुता (सीता माता) और भगवान श्रीराम के दास कहे जाते हैं, और उनकी शपथ पर किसी भी प्रकार का विलंब नहीं हो सकता।
"जय जय जय" की ध्वनि आकाश में गूंजती है, और जो व्यक्ति इसका स्मरण करता है, उसके अत्यधिक दुःख भी नष्ट हो जाते हैं।
चरण शरण कर जोरि मनावौं, यहि अवसर अब केहि गोहरावौं ॥
उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई, पाँय परौं, कर जोरि मनाई ॥
भावार्थ:
हे हनुमान जी, मैं आपके चरणों में शरण लेकर, दोनों हाथ जोड़कर विनती करता हूँ। अब इस अवसर पर मैं आपके सामने अपनी प्रार्थना प्रस्तुत करता हूँ।
उठिए, उठिए, भगवान राम की शपथ लेकर मेरे दुःख का निवारण कीजिए। मैं आपके चरणों में सिर झुका कर, हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हूँ कि आप मेरी सहायता करें।
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता, ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता ॥
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल, ॐ सं सं सहमि पराने खल दल ॥
भावार्थ:
यह मंत्र हनुमान जी की शक्ति, तेज और आक्रामकता को व्यक्त करता है।
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता - यह मंत्र हनुमान जी की तेज गति और चपलता का प्रतीक है, जो न केवल असंभव कार्यों को संभव कर सकते हैं, बल्कि वे किसी भी स्थान पर त्वरित गति से यात्रा कर सकते हैं।
ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता - यह मंत्र हनुमान जी के दिव्य नाम का जाप करता है, जो उनके द्वारा की गई हर उत्कृष्टता और वीरता को इंगीत करता है।
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल - यह दर्शाता है कि हनुमान जी अपनी दिव्य शक्तियों से शत्रुओं को नष्ट कर देते हैं और वे कपि के रूप में चपल और चंचल गति से शत्रुओं का संहार करते हैं।
ॐ सं सं सहमि पराने खल दल - यह हनुमान जी की शक्ति को प्रकट करता है, जो सभी खल, दुष्ट, और शत्रुओं का नाश करते हैं। वे अपने शक्ति से उनके प्राणों को भयभीत और नष्ट कर देते हैं।
अपने जन को तुरत उबारो, सुमिरत होय आनंद हमरो ॥
यह बजरंग बाण जेहि मारै, ताहि कहो फिरि कौन उबारै ॥
भावार्थ:
हे हनुमान जी, आप अपने भक्तों की तुरंत मदद करते हैं और उनका उद्धार करते हैं। आपका स्मरण करने से हमें आनंद और सुख की प्राप्ति होती है।
जो व्यक्ति बजरंग बाण का पाठ करता है और उसका प्रभाव प्राप्त करता है, उसे कोई भी शत्रु या संकट फिर क्यों न हो, वह कभी भी पराजित नहीं हो सकता। क्योंकि बजरंग बाण के प्रभाव से उसकी रक्षा हनुमान जी स्वयं करते हैं।
पाठ करै बजरंग बाण की, हनुमत रक्षा करै प्रान की ॥
यह बजरंग बाण जो जापै, ताते भूत-प्रेत सब कापैं ॥
भावार्थ:
जो व्यक्ति नियमित रूप से बजरंग बाण का पाठ करता है, भगवान हनुमान उसकी प्राणों की रक्षा करते हैं। उनकी कृपा से उसे किसी भी प्रकार का संकट या भय नहीं होता।
जो व्यक्ति इस मंत्र का जाप करता है, उसके ऊपर भूत-प्रेत या अन्य बुरी शक्तियाँ कभी भी आक्रमण नहीं कर सकतीं। वे सभी भयभीत हो जाती हैं, क्योंकि बजरंग बाण का प्रभाव अत्यधिक शक्तिशाली होता है।
धूप देय जो जपै हमेशा, ताके तन नहिं रहै कलेशा ॥
भावार्थ:
जो व्यक्ति हमेशा बजरंग बाण का जाप करता है, उसकी पूजा और भक्ति का कोई भी कष्ट नहीं होता। उसके शरीर में किसी प्रकार का कोई रोग या शारीरिक कष्ट नहीं रहता, क्योंकि हनुमान जी उसकी रक्षा करते हैं।
दोहा
प्रेम प्रतीतिहि कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान ॥
भावार्थ:
जो व्यक्ति हनुमान जी की भक्ति प्रेम और श्रद्धा से करता है और हमेशा अपने ह्रदय में उनका ध्यान करता है, उसके सभी कार्य शुभ और सफल होते हैं। हनुमान जी अपनी विशेष कृपा से उसकी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं और उसके कार्यों में सिद्धि प्रदान करते हैं।
प्रश्न: क्या महिलाएं बजरंग बाण का पाठ कर सकती हैं?
उत्तर: हाँ, महिलाएं भी श्रद्धा पूर्वक बजरंग बाण का पाठ कर सकती हैं, परंतु हनुमान जी को स्पर्श न करें।
प्रश्न: बजरंग बाण का पाठ कब नहीं करना चाहिए?
उत्तर: मासिक धर्म के दौरान, सूतक के समय, और मांस-मदिरा के सेवन के बाद पाठ नहीं करना चाहिए।
प्रश्न: बजरंग बाण का पाठ कितने दिनों तक करना चाहिए?
उत्तर: विशेष कष्ट या समस्या होने पर 11, 21, या 31 दिनों का संकल्प लेकर पाठ करें।
प्रश्न: बजरंग बाण का जाप करने से क्या लाभ होते हैं?
उत्तर: बजरंग बाण का जाप करने से मानसिक शांति, शारीरिक स्वास्थ्य, और शत्रुओं से सुरक्षा मिलती है। यह भूत-प्रेत, दुष्ट शक्तियों, और नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा करता है।
प्रश्न: क्या बजरंग बाण का जाप सभी के लिए करना उचित है?
उत्तर: हां, बजरंग बाण का जाप सभी के लिए करना उचित है, लेकिन इसका प्रभाव और लाभ उन्हीं को मिलता है जो इसे श्रद्धा और निष्ठा से करते हैं।
प्रश्न: क्या बजरंग बाण का जाप हर दिन करना चाहिए?
उत्तर: हां, अगर व्यक्ति हर दिन बजरंग बाण का जाप करता है, तो उसे मानसिक और शारीरिक शांति मिलती है और भगवान हनुमान की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
प्रश्न: क्या बजरंग बाण का पाठ बिना नहाए किया जा सकता है?
उत्तर: हालांकि यह बेहतर है कि नहाने के बाद ही पाठ किया जाए, लेकिन अगर किसी विशेष परिस्थिति में बिना स्नान के पाठ करना हो, तो उसे श्रद्धा और ध्यान से किया जा सकता है।
प्रश्न: क्या बजरंग बाण का पाठ घर में किया जा सकता है?
उत्तर: हां, बजरंग बाण का पाठ घर में भी किया जा सकता है। इसे हर रोज़ घर के पूजा स्थल पर ध्यान और भक्ति से पढ़ना शुभ होता है।
प्रश्न: क्या बजरंग बाण का जाप करने से भूत-प्रेत से सुरक्षा मिलती है?
उत्तर: हां, बजरंग बाण का जाप भूत-प्रेत और नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करता है। यह व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत बनाता है।