रथ यात्रा (Puri Rath Yatra) एक बहुत बड़ा हिंदू त्योहार है और यह हर साल पुरी, ओडिशा, भारत में प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर (Jagannatha Temple) में आयोजित किया जाता है। रथ यात्रा का दिन हिंदू चंद्र कैलेंडर के आधार पर तय किया जाता है और यह आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष के दौरान द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। वर्तमान में यह ग्रेगोरियन कैलेंडर में जून या जुलाई के महीने में आता है।
भगवान जगन्नाथ (Bhagwan Jagannath) की पूजा मुख्य रूप से पुरी शहर में प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर में की जाती है। भगवान जगन्नाथ को भगवान विष्णु (Lord Vishnu) का एक रूप माना जाता है। जगन्नाथ का शाब्दिक अर्थ है ब्रह्मांड के भगवान (Brahmand ke Bhagwan)। जगन्नाथ मंदिर चार धाम तीर्थ के रूप में जाने जाने वाले चार हिंदू तीर्थस्थलों में से एक है। भगवान जगन्नाथ की पूजा उनके भाई बलभद्र (Balbhadra) और उनकी बहन देवी सुभद्रा (Devi Subhadra) के साथ की जाती है।
रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ की गुंडिचा माता मंदिर (Gundicha Mata Mandir) की वार्षिक यात्रा की याद दिलाती है। ऐसा कहा जाता है कि पुरी जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) का निर्माण करने वाले पौराणिक राजा इंद्रद्युम्न की पत्नी रानी गुंडिचा की भक्ति का सम्मान करने के लिए, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा मुख्य मंदिर में अपना नियमित निवास छोड़ देते हैं और गुंडिचा मंदिर में कुछ दिन बिताते हैं।
पुरी रथ यात्रा का मुख्य केंद्र विशाल रथ हैं जिसमें तीन देवता गुंडिचा मंदिर (Gundicha mandir) की यात्रा करते हैं। भगवान जगन्नाथ (दुनिया के शासक), उनके बड़े भाई बलभद्र (बलराम) और उनकी बहन सुभद्रा के लिए हर साल तीन अलग-अलग रथ नीम के पेड़ से बनाए जाते हैं। इन भव्य रथों को बनाने के लिए किसी अन्य लकड़ी का उपयोग नहीं किया जा सकता है। रथ का निर्माण अक्षय तृतीया (Akshay Tritiya) पर शुरू होता है, जिसे जगन्नाथ मंदिर की 42 दिवसीय चंदन यात्रा की शुरुआत भी कहा जाता है।
पवित्र त्रिमूर्ति की इस वार्षिक रथ यात्रा (Rath Yatra) के लिए हर साल अक्षय तृतीया से लगभग 1400 बढ़ई तीन विशाल रथ बनाने का काम शुरू करते हैं। सारा काम पुरी के राजा के महल के सामने किया जाता है। इस स्थान को रथ खला के नाम से जाना जाता है जो एक रथ यार्ड है। 1200 मीटर कपड़े से रथों की छतरियां बनाई जाती हैं और इस पर करीब 15 कुशल दर्जी काम करते हैं। चार लकड़ी के घोड़े सामने लगे होते हैं और इन रथों को पूरी सटीकता के साथ बनाने में प्राचीन प्रथाओं जैसे टेप को मापने के बजाय हाथ की लंबाई, लोहे की कीलों के बजाय लकड़ी के खूंटे और जोड़ों का उपयोग किया जाता है। रथ की संरचना, मॉडल, डिजाइन और माप हर साल एक समान रहता है जो कि उत्तम कलात्मकता का एक उदाहरण है।
भगवान जगन्नाथ (Bhagwan Jagannath) के रथ को गरुड़ध्वज (GarudaDhwaj) या कपिलध्वज (KapilDhwaj) कहा जाता है। बलराम (Balrama) के रथ को तलध्वज (TalDhwaj) या लंगलध्वज (LangDhwaj) और सुभद्रा (Subhadra) के रथ को दर्पदलन (DarpanDalan) या पद्मध्वज (PadmaDhawaj) के नाम से जाना जाता है।
वर्ष 2025 में जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा का आयोजन 27 जून, शुक्रवार को किया जाएगा।
तिथि विवरण:
यह पर्व ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की विशाल रथ यात्रा के रूप में मनाया जाता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं।