दुर्गा पूजा (Durga Puja) का त्यौहार हमारे भारतवर्ष में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्यौहार के मनाए जाने के पीछे का कारण महिषासुर का अंत है। जिस दिन देवी दुर्गा (Devi Durga) ने अत्याचारी और अहंकारी दानव महिषासुर का वध (Mahisasur Vadh) किया था, उसी दिन को हम विजयादशमी (Vijaya Dashmi) के नाम से अथवा दुर्गा पूजा के नाम से जानते हैं।
दुर्गा पूजा (Durga Puja) का त्यौहार बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। दुर्गा पूजा का त्यौहार 8 से 9 दिन का होता है। जिसे हम नवरात्रि के नाम से भी जानते हैं। 9 दिन के त्यौहार में अष्टमी से दशमी तक की तिथि दुर्गा पूजा के नाम से जानी जाती है। भक्तों द्वारा देवी दुर्गा का पंडाल सजाया जाता है तथा 9 दिन के इस त्यौहार को मनाया जाता है।
देवी दुर्गा (Devi Durga) हिंदू धर्म की सर्व शक्तिशाली देवियों में से एक हैं। पृथ्वी पर बड़े अत्याचार को समाप्त करने के लिए माता दुर्गा ने नव रूप धारण किए। इनके इन नौ रूपों की पूजा नवरात्रि में होती है। मां दुर्गा के प्रत्येक रूपों ने अनेकों शक्तिशाली राक्षसों का वध किया तथा सृष्टि को अहंकारी अत्याचारी दानवों से मुक्त नवरात्रि का आखिरी दिन विजयादशमी (Vijaya Dashmi) के नाम से जाना जाता है। कहानियों के अनुसार भगवान श्रीराम (Bhagwan ShriRam) ने विजयादशमी के ही दिन रावण का वध (Ravan Vadh) किया था।
दुर्गा पूजा में कन्या पूजन का महत्व
कन्या पूजन करने से माता की विशेष कृपा प्राप्त होती है। मान्यता है कि बिना कन्या पूजन के नवरात्रि का पूरा फल नहीं मिलता है। इससे माता रानी (Mata Rani) प्रसन्न होती हैं और सुख-शांति और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। कन्या पूजन करने से परिवार के सभी सदस्यों के बीच प्रेम भाव बना रहता है और सभी सदस्यों की तरक्की होती है। स्कंद पुराण के अनुसार, 2 वर्ष की कन्या को कुमारी, 3 वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ती, 4 वर्ष की कन्या को कल्याणी, 5 वर्ष की कन्या को रोहिणी, 6 वर्ष की कन्या को कालिका, 7 वर्ष की कन्या को चंडिका, 8 वर्ष की कन्या को शांभवी और 9 वर्ष की कन्या को मां दुर्गा का स्वरूप माना जाता है। वहीं 10 वर्ष की आयु की कन्या को सुभद्रा कहा जाता है। 2 वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक की कन्या की पूजा करने से व्यक्ति को अलग-अलग फलों की प्राप्ति होती है। जैसे कुमारी की पूजा करने से आयु और बल की वृद्धि होती है।
त्रिमूर्ति की पूजा (Trimurti ki Puja) करने से धन और वंश वृद्धि, कल्याणी की पूजा से राजसुख, विद्या, विजय की प्राप्ति होती है। कालिका की पूजा से सभी संकट दूर होते हैं और चंडिका की पूजा (Chandika Ki Puja) से ऐश्वर्य व धन की प्राप्ति होती है। शांभवी की पूजा (Shambhavi ki Puja) से विवाद खत्म होते हैं और दुर्गा की पूजा करने से सफलता मिलती है। सुभद्रा की पूजा (Subhadra ki Puja) से रोग नाश होते हैं और रोहिणी की पूजा से सभी मनोरथ पूरे होते हैं। शास्त्रों अनुसार, दो से दस वर्ष की कन्याओं का पूजन करना चाहिए। नौ कन्याओं का पूजन सर्वोत्तम माना गया है। धर्मज्ञों का कहना है कि संख्या के अनुसार कन्या पूजन का फल मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कन्या पूजन में 9 कन्याओं का पूजन किया जाता है। हर कन्या का अलग और विशेष महत्व होता है।
एक कन्या की पूजा (Kanya ki Puja) करने से ऐश्वर्य, दो कन्याओं से भोग व मोक्ष दोनों, तीन कन्याओं के पूजन से धर्म, अर्थ व काम तथा चार कन्याओं के पूजन से राजपद मिलता है। पांच कन्याओं की पूजा करने से विद्या, छह कन्याओं की पूजा से छह प्रकार की सिद्धियां, सात कन्याओं से सौभाग्य, आठ कन्याओं के पूजन से सुख- संपदा प्राप्त होती है। नौ कन्याओं की पूजा करने करने से संसार में प्रभुत्व बढ़ता है।
पुरानी कहानियों के अनुसार भगवान श्रीराम (Bhagwan Shri Ram) ने ही देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा प्रारंभ की थी। रामायण की कथा के अनुसार जब प्रभु श्री राम एवं रावण के मध्य घमासान युद्ध चल रहा था, इसी दौरान श्री रामचंद्र जी ने अश्विन महीने के 9 दिनों लगातार देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा प्रारंभ की थी। कहा जाता है कि मां दुर्गा की आशीर्वाद से दसवें दिन श्री रामचंद्र जी ने रावण का वध किया तथा अपनी पत्नी देवी सीता को मुक्त कराया। तब से यह परंपरा हर वर्ष नवरात्रि के रूप से जानी जाती हैं। विजयादशमी के अवसर पर जगह जगह रामलीला का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें श्री राम की विजय रावण की अंत पर प्रकाश डाला जाता है।।
दुर्गा सप्तशती में वर्णित कथाओं के अनुसार दशहरा मनाए जाने के पीछे पौराणिक कथा यह है कि महिषासुर नामक एक अत्याचारी दानव ने सज्जनों तथा देवताओं पर कई अत्याचार किए। देवताओं ने महिषासुर की अत्याचार से सृष्टि की रक्षा करने के लिए माता दुर्गा से विनती की। माता दुर्गा ने देवताओं की विनती स्वीकार की तथा महिषासुर से युद्ध किया। यह युद्ध 9 दिनों तक चला तथा दसवें दिन देवी दुर्गा ने दाना महिषासुर का अंत कर दिया। इसी कारण से हम इस त्यौहार को दशमी के नाम से भी जानते हैं। दसवीं के दिन नवरात्रि के पहले दिन स्थापित किए गए कलश, बोए गए ज्वार ,मां दुर्गा के मूर्तियों का विसर्जन होता है ।
नवरात्रि की शुरुआत इस साल 03 अक्टूबर से होगी तथा इसमें कलश स्थापना का कार्य करेंगे और विजयदशमी 12 अक्टूबर 2024 मंगलवार के दिन मनाया जाएगा।
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