हिंदू धर्म में तीज-त्योहारों का विशेष महत्व है। सनातन परंपरा में हर माह में त्यौहार मनाए जाते हैं। ऐसा ही एक त्यौहार है, जिसे हम हरतालिका तीज (Hariyali Teej) के नाम से जानते हैं। हरतालिका तीज भारत में महिलाओं के द्वारा मनाया जाता है। आस्था, उमंग, सौंदर्य और प्रेम का यह उत्सव शिव-पार्वती (Shiva-Parvati) के पुनर्मिलन का प्रतीक है। वैसे तो यह पूरे भारत में धूमधाम के साथ मनाया जाता है लेकिन हरियाणा, राजस्थान, उत्तरी मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में यह त्यौहार विशेष तौर पर मनाया जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसे कजली तीज के रूप में मनाते हैं।
हरतालिका तीज का व्रत हर साल के भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। साल 2024 में यह व्रत 6 सितंबर 2024 को शुक्रवार के दिन मनाया जाएगा।
हरतालिका तीज की प्रमुख परंपराएं (Major traditions of Hartalika Teej)
इस त्यौहार पर विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। कई बार देखा जाता है कि अविवाहित लड़कियां भी इस व्रत को रखती हैं। नवविवाहित महिलाएं इस पर्व को बड़ी आस्था के साथ मनाती हैं, कई जगह तो नवविवाहित महिलाएं इस त्यौहार को मनाने के लिए अपने मायके चली जाती हैं, वहां उनकी ससुराल से वस्त्र, आभूषण, श्रृंगार का सामान, मेहंदी और मिठाई भेजी जाती है।
हरतालिका तीज के इस त्यौहार पर मेहंदी का विशेष महत्व माना जाता है। इस त्यौहार की तैयारी में महिलाएं अपने हाथों में विभिन्न प्रकार की डिजाइनों वाली मेहंदी लगाती हैं। इस दिन सुहागिन स्त्रियां अपनी सास या जेठानी के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
हरतालिका तीज पर पूजा के लिए निम्नलिखित सामग्री एकत्र कर लें-
घी, दीपक, अगरबत्ती, धूपबत्ती, 2 पान, कपूर, 2 सुपारी और भोग के लिए केले। साथ ही पानी से भरा कलश, आम के पत्ते, केले के पत्ते, धतूरा, फूल, बेल के पत्ते, एक चौकी, साबुत नारियल, शमी के पत्ते, चंदन, 16 श्रृंगार की वस्तुएं जैसे कि काजल, कुमकुम, मेहंदी, बिंदी, सिंदूर, चूडियां, बिछियां, कंघा और लाल चुनरी आदि।
माँ पार्वती (Maa Parvati) ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शिव (Lord Shiva) को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हिमालय पर गंगा के तट पर घोर तप किया। इस दौरान उन्होंने कई वर्षों तक कुछ भी ग्रहण नहीं किया। यह सब देखकर उनके पिता अत्यंत दु:खी थे। इसी बीच एक दिन देवर्षि नारद (Devarshi Narad) उनके पिता जी के पास पहुंचे और उन्होंने माँ पार्वती के विवाह का प्रस्ताव दिया। जिसे उनके पिता ने तुरंत स्वीकार कर लिया।
जब माँ पार्वती (Maa Parvati) को यह पता चला तो वो अत्यंत दु:खी हुईं। उन्होंने यह बात अपनी एक सहेली से बताई। तब सहेली की सलाह के अनुसार माँ पार्वती (Maa Parvati) एक गुफा में चली गईं और वहां जाकर भगवान शिव (Lord Shiva) की आराधना में लीन हो गईं। माँ पार्वती के इस रूप को नवरात्रि में माता शैलपुत्री (Shailputri) के नाम से पूजा जाता है।
काफी समय बीतने के बाद माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और देवाधिदेव महादेव की स्तुति करते हुए पूरी रात जागकर उनकी आराधना की। भोलेनाथ माँ पार्वती की तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्होंने उन्हें दर्शन दिए। साथ ही माँ पार्वती की इच्छानुसार उन्हें अपनी अर्धांगनी के रूप में स्वीकार कर लिया।
इसलिए मान्यता है कि जो भी विवाहित महिलाएं श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया को विधि-विधानपूर्वक और पूर्ण निष्ठा से इस व्रत को करती हैं, उन्हें उनकी इच्छानुसार पति मिलता है, साथ विवाहित महिलाओं का दाम्पत्य जीवन सुखपूर्वक बीतता है।
प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न: हरतालिका तीज कब मनाया जाता है?
उत्तर: हरतालिका तीज श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है।
प्रश्न: हरतालिका तीज का त्यौहार क्यों मनाया जाता है?
उत्तर: हरतालिका तीज का पर्व महिलाओं द्वारा सुखी दाम्पत्य जीवन और पति की लंबी उम्र के लिए मनाया जाता है।
प्रश्न: हरतालिका तीज में किसकी पूजा की जाती है?
उत्तर: हरतालिका तीज में भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा की जाती है।