सनातन परंपरा में कई त्यौहार मनाए जाते हैं, उनमें से अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) एक प्रमुख त्यौहार माना जाता है। सभी मताएं बच्चों के उज्जवल भविष्य और दीर्घायु के लिए यह त्यौहार मनाती हैं। हिंदू कैलेंडर के अनुसार यह त्यौहार कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को पड़ता है। इस दिन अहोई माता के साथ-साथ स्याही माता की भी पूजा का विधान है, इस दिन शाम के समय अहोई माता की पूजा की जाती है और तारों के दर्शन के पश्चात ही व्रत खोला जाता है। यह व्रत और पूजा भारत के उत्तरी क्षेत्रों में प्रचिलित है।
अहोई अष्टमी विशेषकर माताओं के बीच सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व रखती है। यह व्रत माताएं अपने बच्चों की भलाई और लंबी उम्र के लिए रखती हैं। ऐसा माना जाता है कि यह व्रत रखने से बच्चों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और उन्हें खुशी और समृद्धि प्राप्त होती है। अहोई अष्टमी का त्यौहार माँ और उसके बच्चों के बीच के गहरे संबंध कोर्शित करता है।
साल 2024 में अहोई अष्टमी 24 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इसका शुभ मुहूर्त 24 अक्टूबर को रात्रि 1 बजकर 18 मिनिट से शुरू होगा। जो 25 अक्टूबर को रात्रि 1 बजकर 58 मिनट पर समाप्त होगा।
स्नान के बाद काले, नीले या गहरे रंग के कपड़े न पहनें।
किसी भी जीव जन्तु को नुकसान न पहुचाएं।
पेड़-पौधों और हरे भरे वृक्षों को नुकसान न पहुचाएं।
किसी अन्य पूजा में इस्तेमाल हुई पूजा सामग्री का उपयोग न करें।
प्रातः काल जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
व्रत का संकल्प लें और निर्जला व्रत का पालन करें।
एक लकड़ी की चौकी लें, उसे पानी से धोकर उसमें लाल कपड़ा बिछाएं।
चौकी पर अहोई माता की तस्वीर स्थापित करें।
चौकी के निकट गेहूं का ढेर बनाकर उस पर कलश स्थापित करें।
घी का दीपक या अगरबत्ती जलाएं।
अहोई माता को फूल, माला, रोली, सिंदूर, अक्षत तथा दूध और चावल से बनी खीर, आठ पूड़ी और आठ मालपुआ चढ़ाएं।
हाथों में फूल लेकर अहोई माता की व्रत कथा पढ़े।
शाम के बाद तारों और चंद्रमा के दर्शन के उपरांत उन्हें अर्घ्य दें।
विधि विधान से पूजा करके भोग लगाएं।
पूजा पूरी होने के बाद आपने जो समान पूजा में चढ़ाया है उसे अपनी घर की किसी बुजुर्ग महिला को दे दें।
प्राचीन काल में एक साहूकार रहता था। उसके एक बेटी और सात बेटे थे। उसने अपने सभी बेटे-बेटियों की शादियां कर दी थी। हर बार की दिवाली को अपने परिवार के साथ मनाने के लिए साहूकार की बेटी अपने घर आती थी। दिवाली के शुभ मौके पर घर की लीपापोती करने के लिए साहूकार की सभी बहुएं मिट्टी लेने के लिए जंगल जा रही थीं, यह देख साहूकार की बेटी भी उनसे साथ चली गई। साहूकार की बेटी जंगल पहुंचकर मिट्टी काटने लगी। साहूकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने सात बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहू का एक बच्चा मर गया। स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी।
स्याहू की बात से डरकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभीयों से एक एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा ले। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो गई। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते वे सात दिन बाद मर जाते। यह देखकर छोटी भाभी बहुत दु:खी हुई। उसने पंडित से इसका कारण पूछा तो पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी। छोटी भाभी सुरही गाय की सेवा करने लगी। सुरही गाय कई दिनों बाद छोटी बहु की सेवा से प्रसन्न होती है, और उससे पूछती है कि तू किसलिए मेरी इतनी सेवा कर रही है? तब उसने सुरही गाय को अपनी पूरी व्यथा बताई।
पूरी व्यथा सुनने के बाद सुरही उसे स्याहु के पास ले जाने के लिए तैयार हो जाती है। इस बीच रास्ते में दोनों थक जाती हैं तो आराम करने लगती हैं। अचानक साहूकार की छोटी बहु देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है। जब गरूड़ पंखनी को पता चलता है कि साहूकार की छोटी बहू ने उसके बच्चे की जान बचाई है तब गरूड़ पंखनी प्रसन्न होकर सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है। वहां स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहू होने का अशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहु का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से भर जाता है।
प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न: अहोई अष्टमी व्रत के दिन क्या नहीं करना चाहिए?
उत्तर: अहोई अष्टमी पर धातु के बर्तन से ही अर्घ्य देना चाहिए। इस दिन मिट्टी को हाथ न लगाएं। दिन को सोने से बचें। किसी से किसी भी तरह का वाद विवाद न करें।
प्रश्न: साल 2024 में अहोई अष्टमी कब है?
उत्तर: साल 2024 में अहोई अष्टमी 24 अक्टूबर को मनाई जाएगी।