श्री गणेश (Shree Ganesh) के अवतार उनकी लीलाओं का अद्भुत वर्णन पुराणों एवं उपनिषदों से प्राप्त होता है। वेदों के अनुसार किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत गणेश जी के नाम से करनी चाहिए। ऐसा करने से भक्तों को अपने कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती हैं। किसी शुभ कार्य की शुरुआत को उस कार्य का श्रीगणेश करना भी कहा जाता है।
पद्म पुराण के अनुसार एक बार माता पार्वती जी ने अपने शरीर में लगे उबटन को उतारने के पश्चात निकले मैल से एक मनोहर आकृति बनाई। इस आकृति का मुख हाथी के समान था। उन्होंने इस विशिष्ट आकृति को गंगा के जल में डाल दिया, गंगा के जल में पड़ते ही उस आकृति ने एक विशालकाय रूप धारण कर लिया। पार्वती जी ने इस आकृति को पुत्र कह कर पुकारा तथा सभी देवी देवताओं ने इसे गांगेय नाम से संबोधित किया। ब्रह्मा जी ने इस आकृति को गणेश नाम से संबोधित किया।
आसुरी शक्तियों के विनाश के लिए भगवान श्री गणेशने लिए थे यह 8 प्रमुख अवतार (These 8 major incarnations were taken by Lord Shri Ganesha for the destruction of demonic powers)
आज हम आपको भगवान गणेश (Bhagwan Ganesh) के प्रमुख 8 अवतारों के बारे में बताएंगे। अन्य सभी देवताओं के समान भगवान गणेश (Lord Ganesha) ने भी आसुरी शक्तियों के विनाश के लिए विभिन्न अवतार लिए। श्रीगणेश के इन अवतारों का वर्णन गणेश पुराण, मुद्गल पुराण, गणेश अंक आदि ग्रंथो में मिलता है।जानिए श्रीगणेश के अवतारों के बारे में-
1. वक्रतुंड (Vakratunda) - वक्रतुंड का अवतार राक्षस मत्सरासुर के दमन के लिए हुआ था। मत्सरासुर शिव भक्त था और उसने शिव की उपासना करके वरदान पा लिया था कि उसे किसी से भय नहीं रहेगा। मत्सरासुर ने देवगुरु शुक्राचार्य की आज्ञा से देवताओं को प्रताडि़त करना शुरू कर दिया। उसके दो पुत्र भी थे सुंदरप्रिय और विषयप्रिय, ये दोनों भी बहुत अत्याचारी थे। सारे देवता शिव की शरण में पहुंच गए। शिव ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे गणेश का आह्वान करें, गणपति वक्रतुंड अवतार लेकर आएंगे। देवताओं ने आराधना की और गणपति ने वक्रतुंड अवतार लिया। वक्रतुंड भगवान ने मत्सरासुर के दोनों पुत्रों का संहार किया और मत्सरासुर को भी पराजित कर दिया। वही मत्सरासुर कालांतर में गणपति का भक्त हो गया।
2. एकदंत (Ekdant) - महर्षि च्यवन ने अपने तपोबल से मद की रचना की। वह च्यवन का पुत्र कहलाया। मद ने दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य से दीक्षा ली। शुक्राचार्य ने उसे हर तरह की विद्या में निपुण बनाया। शिक्षा होने पर उसने देवताओं का विरोध शुरू कर दिया। सारे देवता उससे प्रताडि़त रहने लगे। मद इतना शक्तिशाली हो चुका था कि उसने भगवान शिव को भी पराजित कर दिया। सारे देवताओं ने मिलकर गणपति की आराधना की। तब भगवान गणेश एकदंत रूप में प्रकट हुए। उनकी चार भुजाएं थीं, एक दांत था, पेट बड़ा था और उनका सिर हाथी के समान था। उनके हाथ में पाश, परशु और एक खिला हुआ कमल था। एकदंत ने देवताओं को अभय वरदान दिया और मदासुर को युद्ध में पराजित किया।
3. महोदर (Mahodar) - जब कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया तो दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने मोहासुर नाम के दैत्य को संस्कार देकर देवताओं के खिलाफ खड़ा कर दिया। मोहासुर से मुक्ति के लिए देवताओं ने गणेश की उपासना की। तब गणेश ने महोदर अवतार लिया। महोदर का उदर यानी पेट बहुत बड़ा था। वे मूषक पर सवार होकर मोहासुर के नगर में पहुंचे तो मोहासुर ने बिना युद्ध किये ही गणपति को अपना इष्ट बना लिया।
4. गजानन (Gajanan) - एक बार धनराज कुबेर भगवान शिव-पार्वती के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत पर पहुंचा। वहां पार्वती को देख कुबेर के मन में काम प्रधान लोभ जागा। उसी लोभ से लोभासुर का जन्म हुआ। वह शुक्राचार्य की शरण में गया और उसने शुक्राचार्य के आदेश पर शिव की उपासना शुरू की। शिव लोभासुर से प्रसन्न हो गए। उन्होंने उसे सबसे निर्भय होने का वरदान दिया। इसके बाद लोभासुर ने सारे लोकों पर कब्जा कर लिया और खुद शिव को भी उसके लिए कैलाश को त्यागना पड़ा। तब देवगुरु ने सारे देवताओं को गणेश की उपासना करने की सलाह दी। गणेश ने गजानन रूप में दर्शन दिए और देवताओं को वरदान दिया कि मैं लोभासुर को पराजित करूंगा। गणेश ने लोभासुर को युद्ध के लिए संदेश भेजा। शुक्राचार्य की सलाह पर लोभासुर ने बिना युद्ध किए ही अपनी पराजय स्वीकार कर ली।
5. लंबोदर (Lamodar) - समुद्रमंथन के समय भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) ने जब मोहिनी रूप धरा तो शिव उन पर काम मोहित हो गए। उनका शुक्र स्खलित हुआ, जिससे एक काले रंग के दैत्य की उत्पत्ति हुई। इस दैत्य का नाम क्रोधासुर था। क्रोधासुर ने सूर्य की उपासना करके उनसे ब्रह्मांड विजय का वरदान ले लिया। क्रोधासुर के इस वरदान के कारण सारे देवता भयभीत हो गए। वो युद्ध करने निकल पड़ा। तब गणपति ने लंबोदर रूप धरकर उसे रोक लिया। क्रोधासुर को समझाया और उसे ये आभास दिलाया कि वो संसार में कभी अजेय योद्धा नहीं हो सकता। क्रोधासुर ने अपना विजयी अभियान रोक दिया और सब छोड़कर पाताल लोक में चला गया।
6. विकट (Vikat) - भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) ने जलंधर के विनाश के लिए उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग किया। उससे एक दैत्य उत्पन्न हुआ, उसका नाम था कामासुर। कामासुर ने शिव की आराधना करके त्रिलोक विजय का वरदान पा लिया। इसके बाद उसने अन्य दैत्यों की तरह ही देवताओं पर अत्याचार करने शुरू कर दिए। तब सारे देवताओं ने भगवान गणेश का ध्यान किया। तब भगवान गणपति ने विकट रूप में अवतार लिया। विकट रूप में भगवान मोर पर विराजित होकर अवतरित हुए। उन्होंने देवताओं को अभय वरदान देकर कामासुर को पराजित किया।
7. विघ्नराज (Vighnaraj) - एक बार पार्वती अपनी सखियों के साथ बातचीत के दौरान जोर से हंस पड़ीं। उनकी हंसी से एक विशाल पुरुष की उत्पत्ति हुई। पार्वती ने उसका नाम मम (ममता) रख दिया। वह माता पार्वती से मिलने के बाद वन में तप के लिए चला गया। वहीं उसकी मुलाकात शम्बरासुर से हुई। शम्बरासुर ने उसे कई आसुरी शक्तियां सीखा दीं। उसने मम को गणेश की उपासना करने को कहा। मम ने गणपति को प्रसन्न कर ब्रह्मांड का राज मांग लिया।
शम्बर ने उसका विवाह अपनी पुत्री मोहिनी के साथ कर दिया। शुक्राचार्य ने मम के तप के बारे में सुना तो उसे दैत्यराज के पद पर विभूषित कर दिया। ममासुर ने भी अत्याचार शुरू कर दिए और सारे देवताओं के बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया। तब देवताओं ने गणेश की उपासना की। गणेश विघ्नराज के रूप में अवतरित हुए। उन्होंने ममासुर का मान मर्दन कर देवताओं को छुड़वाया।
8. धूम्रवर्ण (Dhoomravarna) - एक बार भगवान ब्रह्मा (Bhagwan Brahma) ने सूर्यदेव को कर्म राज्य का स्वामी नियुक्त कर दिया। राजा बनते ही सूर्य को अभिमान हो गया। उन्हें एक बार छींक आ गई और उस छींक से एक दैत्य की उत्पत्ति हुई। उसका नाम था अहम। वो शुक्राचार्य के समीप गया और उन्हें गुरु बना लिया। वह अहम से अहंतासुर हो गया। उसने खुद का एक राज्य बसा लिया और भगवान गणेश को तप से प्रसन्न करके वरदान प्राप्त कर लिए।
उसने भी बहुत अत्याचार और अनाचार फैलाया। तब गणेश ने धूम्रवर्ण के रूप में अवतार लिया। उनका वर्ण धुंए जैसा था। वे विकराल थे। उनके हाथ में भीषण पाश था जिससे बहुत ज्वालाएं निकलती थीं। धूम्रवर्ण ने अहंतासुर का पराभाव किया। उसे युद्ध में हराकर अपनी भक्ति प्रदान की।
लिंग पुराण के अनुसार एक बार देवताओं ने शंकर जी (Bhagwan Shankar) की वंदना करके उनसे दानवों के अंत का वरदान मांगा। तब शिवजी ने तथास्तु कहकर देवताओं को वरदान दिया था। उसी समय दानवों के अंत के लिए भगवान गणेश जी प्रकट हुए। इनका मुख हाथी के समान था तथा गणेश जी अपने एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में पांस धारण किए हुए थे। देवताओं ने यह विचित्र लीला देखकर गणपति जी के चरणों में बार-बार प्रणाम किया तथा पुष्पों की वर्षा की। भगवान शिव के आदेश के अनुसार गणेश जी ने दानवों का अंत किया तथा विघ्नहर्ता गणेश जी के नाम से जाने गए।
गणेश चालीसा (Ganesh Chalisa) में वर्णित कथा के अनुसार माता पार्वती ने एक विलक्षण पुत्र की कामना हेतु तप किया था। यह तप सफल होने के उपरांत परमं प्रतापी ब्राह्मण माता पार्वती से मिलने पहुंचे तब माता पार्वती ने उनका सत्कार किया। इससे प्रसन्न होकर ब्राम्हण ने माता पार्वती को वरदान दिया कि आपको विशिष्ट बुद्धि वाला पुत्र प्राप्त होगा वह गणनायक होगा और गुणवान होगा। इसके बाद वह ब्राम्हण अंतर्ध्यान हो गया और पालने में एक बालक का स्वरूप अवतरित हो गया। परंतु भगवान शनि की दृष्टि पड़ते ही उस बालक का सिर आकाश में उड़ने लगा और हर तरफ यह अफवाह फैल गई कि शनिदेव ने पार्वती पुत्र का नाश कर दिया। इस घटना के उपरांत भगवान विष्णु ने गरुड़ को आदेश दिया कि जो भी पहला प्राणी नजर आए उसका सिर काट कर लौट आओ। गरुड़ जी को सर्वप्रथम हाथी के दर्शन हुए उन्होंने हाथी का सिर काटा और विष्णु जी के पास वापस लौट आए। हाथी के सिर को भगवान शिव ने बालक के धड़ से जोड़कर उसे जीवित कर दिया और उसका नाम गणेश रखा। इसी समय देवताओं द्वारा भगवान गणेश जी को प्रथम पूज्य होने का वरदान भी प्रदान किया गया।
वराह पुराण में लिखित श्री गणेश के जन्म की कथा कुछ इस प्रकार है-
जब भगवान शिव (Bhangwan Shiv) पंच तत्वों से ध्यान मग्न होकर गणेश जी का निर्माण कर रहे थे। शिवजी के एकाग्र चित्त होकर रचना करने के कारण गणेश जी की रचना अत्यंत रूपवान व विशिष्ट हो गई। इस आकर्षक रचना के भय के कारण सभी देवताओं में खलबली मच गई। शिव जी ने यह सब जानकर बालक गणेश का पेट बड़ा कर दिया तथा उनके सिर को हाथी के सिर के रूप में गढ़ दिया। इस प्रकार भगवान गणेश गजानन बन गए।
शिवपुराण (Shivpuran) में वर्णित कथा के अनुसार देवी पार्वती ने चंदन के मिश्रण से एक पुतले का निर्माण किया तथा उसमें प्राण डाल दिए। उन्होंने इस रचना को अपना द्वारपाल बना दिया और किसी को अंदर ना आने देने का आदेश दिया। उनके स्नान ग्रह में जाने के बाद भगवान शिव उपस्थित हुए तथा उन्होंने अंदर जाने की चेष्टा किया। बालक ने उन्हें रोका परंतु शिवजी ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल की मदद से बालक का सिर काट दिया। माता पार्वती इस घटना को जानकर अत्यंत क्रोधित हुई। तब भगवान शिव ने गणेश के धड़ को हाथी के मुख के साथ लगा कर उसे जीवनदान दिया तथा शिव जी ने गणेश जी को कुछ शक्तियां प्रदान की और उसके साथ ही प्रथम पूज्य होने का तथा गणों का देवता होने का आशीर्वाद दिया।
ब्रह्मववर्त पुराण के अनुसार, जब भगवान् परशुराम शिव जी से मिलने कैलाश पर्वत पर गए थे, तब वे ध्यान कर रहे थे। भगवान गणेश ने परशुराम को शिव से मिलने नहीं दिया। परशुराम जी ने क्रोधित होकर गणेश जी परआक्रमण कर दिया। परशुराम ने गणेश पर हमला करने के लिए जिस अस्त्र का इस्तेमाल किया था, वह उन्हें भगवान शिव ने ही दिया था। गणेश जी नहीं चाहते थे कि हमला बेकार जाए क्योंकि यह उनके पिता का अस्त्र था, इसलिए उन्होंने हमले को अपने दांतों में ले लिया और इस तरह अपना एक दांत खो दिया। तभी से उन्हें एकदंत के नाम से जाना जाता है।
गणेश चतुर्थी गणेश जी की पूजा, वंदना का त्यौहार है। एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शंकर और माता पार्वती चौपड़ का खेल खेल रहे थे। इस खेल का निर्धारण करने के लिए भगवान शंकर ने एक तिनके का पुतला बनाया तो था उसमें जान डाल दी। खेल खत्म हुआ माता पार्वती विजय हुई। परंतु पुतले से पूछे जाने पर पुतले ने भगवान शंकर को विजयी बताया। इससे माता पार्वती क्रोधित हो गई तथा उसको लंगड़ा होकर कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। पुतले ने माफी मांगी तब मां पार्वती ने उसे गणेश व्रत करने का उपाय बताएं तथा स्वयं भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गई। 1 वर्ष पश्चात जब नागकन्याए श्री गणेश पूजा करने आईं तब नाग कन्याओं द्वारा उस बालक ने विघ्नहर्ता श्री गणेश के व्रत की विधि जान करके 21 दिनों तक लगातार गणेश जी का व्रत किया। उसकी श्रद्धा देखकर गणेश जी प्रसन्न हुए तथा मनोवांछित वरदान दिया। वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुंचकर यह कथा भगवान शिव एवं माता पार्वती को सुनाई। किंवदंतियों के अनुसार एक बार माता पार्वती क्रोधित हो गई तथा उनके क्रोधित होने पर भगवान शंकर ने भी श्री गणेश जी का व्रत 21 दिनों तक किया इसके प्रभाव से माता पार्वती के मन में भगवान शंकर के लिए क्रोध समाप्त हो गया और वह वापस लौट आई।
कहा जाता है कि माता पार्वती ने भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने के लिए 21 दिन तक श्री गणेश व्रत किया तथा गणेश मूर्ति के सामने बैठकर पूरी श्रद्धा के साथ उनका पूजन किया। तथा 21 वे दिन वह अपने पुत्र कार्तिकेय से मिली। 21 जून को गणेश चतुर्थी 2023 तिथि निर्धारित है। गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) गणेश जी के त्योहार के रूप में जानी जाती है। गणेश चतुर्थी के दिन प्रत्येक वर्ष धूमधाम से गणेश जी की पूजा की जाती है। बड़े-बड़े पंडाल बनाए जाते हैं तथा इन पंडालों में गणेश जी की मूर्ति सजावट का कार्य होता है तथा दूर-दूर से भक्त गणेश जी की पूजा आरती में शामिल होने आते हैं। वर्ष 2023 में गणेश चतुर्थी पूजन शुरुआत 21 जून को दोपहर 03:09 पर होगी और इस तिथि का समापन 22 जून को शाम 05:27 पर हो जाएगा। गणेश कथाओं के अनुसार गणेश चतुर्थी व्रत करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं गणेश चतुर्थी के दिन हैदराबाद के खैरताबाद में गणेश जी की सबसे ऊंची प्रतिमा स्थापित होती है। यह सन 1954 से चली आ रही श्रद्धा है। खैरताबाद 2021 में श्री गणेश की 40 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित की गई थी।
नोट- किसी भी प्रकार की पूजा की शुरुआत हमेशा श्री गणेश से ही की जाती हैं। श्री गणेश को प्रथम पूज्य माना जाता है। प्रत्येक घरों में गणेश मूर्ति(idol) या गणेश जी का चित्र (painting) होना आवश्यक है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार लक्ष्मी जी ने अपने एक भक्त जो वैरागी हो चुका था उसे उसकी इच्छा अनुसार धनवान होने का आशीर्वाद दिया। यह आशीर्वाद पाकर उनके भक्त में अहंकार जागृत हो गया। भक्त ने गणेश जी की प्रतिमा को राजदरबार से यह कह कर बाहर निकलवा दिया कि यह प्रतिमा देखने में सुंदर नहीं लग रही है। इससे भगवान गणेश क्रोधित हुए । जब यह बात माता लक्ष्मी को पता चले तब उन्होंने अपने भक्त से कहा कि तुम गणेश जी को प्रसन्न करो क्योंकि गणेश जी बुद्धि के देवता है तथा बिना बुद्धि के मिला हुआ धन किसी काम का नहीं होता।
माता लक्ष्मी ने श्री गणेश जी को अपने दत्तक पुत्र के रूप में स्वीकार किया। श्री सिद्धिविनायक की पूजा तथा लक्ष्मी जी की पूजा (Lakshmi ji ki Puja) साथ में होने का वरदान भी गणेश जी को लक्ष्मी माता से प्राप्त हुआ है। उन्होंने गणेश जी से प्रसन्न होकर वरदान दिया था कि धन की देवी लक्ष्मी तथा सिद्धिविनायक गणपति की पूजा एक साथ होगी। पुराणों में ऐसी ही कई कहानियां प्रचलित हैं जिसमें से या कहानी प्रमुख है। इसी वजह से दिवाली के दिन लक्ष्मी गणेश की पूजा एक साथ की जाती है। क्योंकि बिना बुद्धि के धन का कोई मोल नहीं होता है। यही कारण है कि दिवाली के दिन लक्ष्मी गणेश मूर्ति की स्थापना कब की जाती है उनकी साथ में पूजा की जाती है।
लक्ष्मी गणेश जी के साथ में पूजा करने के लिए एक और किवदंती प्रचलित है कि जिस प्रकार माता लक्ष्मी अपने पुत्र गणेश जी की रक्षा करती है उसी प्रकार भक्तों की भी रक्षा करें। लक्ष्मी गणेश पूजा करते समय भक्तों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि गणेश भगवान सदैव माता लक्ष्मी के बाएं तरफ विराजमान रहे।
हमें भारत में लगभग हर कस्बे में तथा हर शहर में श्री गणेश मंदिर आसानी से मिल जाते हैं। गणेश जी के कुछ प्रसिद्ध मंदिर निम्नलिखित हैं-
सिद्धिविनायक गणेश मंदिर, मुंबई
अष्टविनायक मंदिर, महाराष्ट्र
चिंतामन गणपति, उज्जैन
खजराना गणेश मंदिर, इंदौर
रॉकफोर्ट उच्च पिल्लयार मंदिर, तमिलनाडु
कनिपक्कम विनायक मंदिर, चित्तुर
मधुर महागणपति मंदिर, केरल
डोडा गणपति मंदिर, बेंगलुरु
रणथंबोर गणेश मंदिर, राजस्थान
गणेश टोक मंदिर, गंगटोक
डोडी ताल मंदिर , उत्तराखंड
पूरब पश्चिम विशेष -
गणेश जी की आरती | गणेश पूजा | अनंत चतुर्दशी | सिद्धिविनायक मंदिर | धनतेरस