हनुमानजी (Hanuman Ji) वनराज केसरी नंदन (Kesari Nandan) और माता अंजनी के पुत्र (Anjani Putra) थे। ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी भगवान शिव (Bhagwan Shiv) के ग्यारहवें रूद्र अवतार थे, और भगवान शिव के सभी अवतारों में सबसे अधिक पराक्रमी थे। हनुमान जी की बाल लीलाओं का वर्णन अद्भुत कलाओं से परिपूर्ण है। हनुमान जी अपने बाल्यकाल से ही वीर और पराक्रमी थे। इनके जीवन से जुड़ी कुछ घटनाएं इस प्रकार हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हिंदी गणना से हनुमान जी (Lord Hanuman) का जन्म 58 हजार 112 वर्ष पहले त्रेता युग से अंतिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को दिन मंगलवार चित्रा नक्षत्र में सुबह 6:03 पर भारत देश में झारखंड राज्य के गुमला जिले के आंजन नामक छोटे से गांव में हुआ था। हनुमान जी के पिता का नाम राजा केसरी (Vanraj Kesari) और माता का नाम अंजनी (Anjani) था। पुराणों के अनुसार वायु देव को हनुमान जी का आध्यात्मिक पिता कहा जाता है। हनुमान जी के कई नाम प्रचलित हैं- जैसे बजरंगबली,अंजनी पुत्र, केसरी नंदन इत्यादि। कुछ भक्त इन्हें पवन पुत्र अर्थात वायु के पुत्र के रूप में भी जानते हैं।
भले ही भगवान राम (Bhagwan Ram) अपने प्रबल भक्त हनुमान से प्यार करते थे, लेकिन कहा जाता है कि उन्होंने एक बार मृत्युदंड दिया था । यह सब इसलिए हुआ क्योंकि हनुमान ने दरबार में विश्वामित्र (Vishvamitra) का अभिवादन नहीं किया जिससे विश्वामित्र नाराज हो गए। फिर उन्होंने राम से हनुमान को बाणों से मृत्युदंड देने के लिए कहा। राम विश्वामित्र की बात सुनने के लिए बाध्य थे क्योंकि वे उनके गुरु थे। इस प्रकार, अगले दिन उसने अपने आदमियों से हनुमान पर बाण चलाकर मृत्युदंड देने को कहा। लेकिन बाणों ने हनुमान को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया क्योंकि वह राम के नाम का जाप (Ram naan ka Jaap) करते रहे। भगवान राम का ब्रह्मास्त्र भी हनुमान के जप के विरुद्ध किसी काम का नहीं था। बाद में पता चला कि नारद (Narad) ने हनुमान को उकसाया था और उन्हें विश्वामित्र को छोड़कर सभी ऋषियों का अभिवादन करने के लिए कहा था।
उड़ने की शिक्षा (Flying Lessons to Hanumanji)
हनुमान जी (Hanuman Ji) के गुरु के रूप में ऋषि मातंग (Rishi Matang) और पवन देव (Pawan Dev) का वर्णन मिलता है। हनुमान जी बचपन से ही बहुत शरारती थे तथा ऋषि-मुनियों को परेशान किया करते थे। मुनियों की समस्या के निवारण के लिए अनेक योद्धा बुलाए गए। जिनसे हनुमान जी का युद्ध हुआ परंतु हनुमानजी के पराक्रम को कोई मात ना दे सका। एक बार उनका सामना इंद्र पुत्र जयंत और सूर्य पुत्र शनि से हुआ जिन से प्रभावित होकर हनुमान ने भी प्रण लिया कि उन्हें उड़ना सीखना है। उनकी इस इच्छा को देखते हुए उनके गुरु पवन देव ने वीर हनुमानजी (Veer Hanumanji) को उड़ने की शिक्षा दी थी।
कहा जाता है कि एक बार उगते हुए सूरज को देख कर वीर हनुमानजी (Veer Hanumanji) ने उसे कोई मीठा फल समझा तथा उसे खाने के लिए निकल पड़े। मार्ग में राहु ने हनुमानजी को रोकने की कोशिश की तब हनुमानजी ने राहु को दूर फेंक दिया तथा अपने कार्य को पुनः संपन्न करने के लिए आगे बढ़े।अंततः हनुमान जी सूर्य को निगल गये तथा संपूर्ण विश्व में अंधकार व्याप्त हो गया।उनकी इस हरकत को देखकर भगवान इंद्र (Bhagwan Indra) क्रोधित होकर उनकी ठूड्डी पर प्रहार किए जिससे हनुमानजी का मुंह खुल गया तथा सूर्यदेव (SuryaDev) बाहर निकल गए और हनुमानजी मूर्छित होकर धरती पर गिर पड़े।
हनुमान जी की यह दशा देखकर वायु देव (Vaayu Dev) नाराज हो गए तथा संपूर्ण विश्व से प्राणवायु अपने अंदर समाहित करने लगे, जिससे जीव-जंतु मरने लगे। पवन देव के इस क्रोध को देखकर सभी देवता गण पवन देव से विनती करने लगे कि वह ऐसा ना करें। देवताओं के विनती के पश्चात पवन देव ने देवताओं की बात को मान लिया। तब देवताओं द्वारा पवन पुत्र हनुमान जी को सचेत करके उन्हें अनेक शक्तियां प्रदान की ।बता दें कि ठोढ़ी को संस्कृत में हनु भी कहा जाता है. इस घटना के बाद से ही राम भक्त बजरंगबली का नाम हनुमान (Shri Rambhakt Bajrangbali Hanuman) पड़ गया.
सीता हरण (Sitaharan) के बाद जब रामचंद्रजी (Ramchandraji),माता सीता (Mata Sita) की खोज में वनों में भटक रहे थे, तब अपने भाई से डरे हुए सुग्रीव ने यह सोचा कि जरूर ही दो तेजस्वी पुरुष राम जी व लक्ष्मण जी (Lakshman ji) मेरे भाई बाली द्वारा भेजे गए दो गुप्तचर हैं, जो उनका अंत करने के लिए उन्हें ढूंढ रहे हैं। तब सुग्रीव ने महाबली हनुमान जी से कहा कि वह पता लगाएं कि यह दोनों साधु वेश धारी व्यक्ति कौन हैं। तब हनुमान जी ने सुग्रीव की आज्ञा का पालन किया तथा श्री राम जी के पास चल पड़े।
श्रीराम से उनकी वास्तविकता जानने के बाद महाबली हनुमान (Mahabali Hanuman) जी ने श्री राम और लक्ष्मण को अपने कंधे पर सम्मान पूर्वक बिठाया तथा महाराज सुग्रीव (Maharaj Sugreev) के पास ले आए। महाराज सुग्रीव ने पूरी वानर सेना के साथ माता सीता को ढूंढने में और रावण के साथ युद्ध में श्री रामचंद्र जी (Shri Ramchandra) की सहायता की। इस प्रकार लंका विजय पर महाबली हनुमानजी (Mahabali Hanumanji),महाराज सुग्रीव इत्यादि वानर सेना ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
मान्यताओं के अनुसार हनुमान जी (Hanuman Ji) ने श्री रामचंद्र जी के मार्ग में आने वाले कई अभूतपूर्व संकटों को दूर किया था। रामायण की कथाओं के अनुसार लक्ष्मण जी के प्राण बचाने के लिए हनुमान जी ने हिमालय जाने तक के सभी संकटों से लड़ते हुए कठिन रास्ते को तय करके उनके लिए संजीवनी बूटी (Sanjeevani Booti) लाई थी जिसके कारण लक्ष्मण जी के स्वास्थ्य में सुधार हुआ । माना जाता है कि सभी संकटों का समाधान हनुमान जी के पास उपलब्ध है। हनुमान जी भक्तों के सभी संकटों को दूर करते हैं इसलिए उनका एक नाम संकट मोचन भी है।
पुंजिकस्थला देवराज इंद्र (Devraj Indra) की सभा में एक अप्सरा थी। जिनको दुर्वासा ऋषि (Durvasa Rishi) के क्रोधित होने के कारण वानरी हो जाने का श्राप मिला था। पुंजिकस्थला ने अपने कृत्य के लिए क्षमा मांगी तब ऋषि ने उन्हें इच्छा अनुसार रूप धारण करने का वर दिया। दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण कुछ वर्षों पश्चात वानर श्रेष्ठ बिरज की पत्नी के गर्भ से वानरी रूप में जन्म लिया और उनका नाम अंजनी रखा गया। पुंजिकस्थला के विवाह योग्य होने पर विराज ने अपनी सुंदर पुत्री अंजनी का विवाह पराक्रमी राजा वानर राज केसरी से कर दिया।इस प्रकार पुंजिकस्थला ही वीर हनुमानजी की माता अंजनी के नाम से प्रसिद्ध हुई।
हिंदू धर्म का महाकाव्य रामायण अपने अंदर हनुमान जी की कई विशेष कथाओं को समेटे हुए हैं। रामायण के पांचवें अध्याय जिसका नाम सुंदरकांड है। यह हनुमान जी पर ही केंद्रित हैं। रामायण के अनुसार जब रावण द्वारा सीता हरण किया जाता है, इसी दौरान सीता की खोज में चल पड़े श्री राम जी को हनुमानजी मिले।तथा हनुमान जी द्वारा वानरराज सुग्रीव और श्री रामचन्द्र की मैत्री कराई गई। जिसके बाद श्रीरामचन्द्र अपनी सेना तैयार कि तथा युद्ध के लिए निकल पड़े।
हिंदू धर्म के दूसरे महाकाव्य महाभारत में भी हनुमान का संक्षिप्त वर्णन मिलता है। महाभारत की तीसरी खंड वानापर्व में हनुमान जी को भीमसेन के सौतेले बड़े भाई के रूप में प्रस्तुत किया गया है।जिसमें भीमसेन,हनुमानजी से कैलाश पर्वत के मार्ग में मिले थे। इस कथा के अनुसार असाधारण शक्तियों वाले भीम हनुमानजी की पूंछ को हिलाने में असमर्थ हो जाते हैं तथा यह स्वीकार करते हैं कि,हनुमान जी की ताकत से जीता नहीं सकता है।
रामायण महाभारत के साथ-साथ हनुमान का उल्लेख अन्य ग्रंथों में भी किया गया है जैसे स्कंद पुराण, रामेश्वरम इत्यादि। विभिन्न धर्मों के अनुसार हनुमानजी की पहचान हिंदू धर्म में हनुमान एक दैवीय शक्ति के रूप में पूजे जाते हैं। बुद्ध धर्म में तिब्बती औरखोतानी मेंभी रामायण के संस्करणों कोप्रस्तुत किया गया है।खोतानी संस्करणों में हनुमान जी के चरित्र को जातक कथाओं के रूप में चित्रित किया गया है। तिब्बती संस्करणों में हनुमान जी को एक वानर दूत के रूप में बताया गया है। जैन धर्म मेंहनुमानजी का उल्लेख एक विद्याधरा प्राणी के रूप में किया गया है जो पवन देवता एवं अंजनी सुंदरी के पुत्र हैं। सिख धर्म के अनुसार भगवान राम को श्री रामचंदर के रूप में परिभाषित किया गया है।इनसिद्ध कथाओं में हनुमान जी की कहानी प्रभावशाली हैं।
हनुमान जी के 12 नामों से पुकारा जाता है, जो निम्न है-
हनुमान
रामेष्ट
उधिकर्मण
अंजनी पुत्र
वायुपुत्र
लक्ष्मण प्राण दाता
अमित विक्रम
दशग्रीवदर्पः
महाबली
सीता शोक विनाशक
फाल्गुन सखा
पिंगाक्ष
हिंदू पुराणों के अनुसार हनुमान जी के नामों का नित्य स्मरण करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। प्रातः काल हनुमान जी के 12 नामों का 11 बार स्मरण करने वाला व्यक्ति दीर्घायु होता है।संध्या के समय हनुमान जी के 12 नामों का स्मरण करने से मनुष्य को पारिवारिक सुखों की प्राप्ति होती है। रात्रि समय हनुमान जीके नामों का स्मरण शत्रु का नाश करता है।
हनुमान जी के कुछ प्रमुख मंदिर निम्नलिखित हैं-
जाखू टेंपल, हिमाचल प्रदेश
संकट मोचन हनुमान मंदिर वाराणसी
श्री हनुमान मंदिर, जामनगर
हनुमान मंदिर, दिल्ली
हनुमान धरा, चित्रकूट
हनुमान मंदिर, इलाहाबाद
हनुमानगढ़ी, अयोध्या इत्यादि।
हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa)
अवधी भाषा के महान कवि तुलसीदास जी ने हनुमान जी की स्तुति में कुछ पद लिखे हैं, जिन्हें हम हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa) के नाम से जानते हैं। एक प्रचलित कथा के अनुसार गोस्वामी तुलसीदास जी को अकबर की कैद में रहते समय हनुमान चालीसा लिखने की प्रेरणा मिली थी।
रामायण महाकाव्य की एक प्रसंग के अनुसार राम रावण युद्ध के समय रावण के भाई अहिरावण द्वारा श्री रामचंद्रजी और लक्ष्मण जी को पाताल लोक ले जाने के उपरांत जब हनुमान जी प्रभु श्रीराम तथा उनके भाई लक्ष्मण जी को मुक्त कराने पहुंचे तो उन्होंने पाया कि, अहिरावण ने 5 दिशाओं में 5 दीपक जलाए थे। क्योंकि अहिरावण को वरदान था कि जबपांचों दीपकों को किसी के द्वारा एक साथ बुझा दिया जाएगा तभी अहिरावण का वध होगा। तब हनुमान जी ने अपने पंचमुखी रूप का अवतार लिया तथा पांचों दीपकों को एक साथ बुझाकर अहिरावण का वध कर दिया। पंचमुखी हनुमान जी (Panchmukhi Hanuman) के पांचों दिशाओं में पांच मुख हैं जिनके अलग- अलग महत्व है। पंचमुखी हनुमान जी के अनुसार हनुमान जी का वानर मुख पूर्व दिशा में, गरुण मुख पश्चिम दिशा में, वराह मुख उत्तर दिशा में,न्रृसिंह मुख दक्षिण दिशा में तथा अश्र्व मुख आकाश की दिशा में है।
कहा जाता है कि श्री राम के द्वारा अमरता का वरदान प्राप्त होने के कारण हनुमान आज भी अजय एवं अमर हैं।लंका विजय के पश्चातश्री राम के सम्मुख हनुमानजी भक्ति का वरदान प्राप्त करने गए थे तब श्रीराम ने उन्हें अपने ह्रदय से लगाया और कहा तुम्हारे शरीर में प्राण और तुम्हारी कीर्ति अमर रहेगी। इसके साथ ही श्री राम ने हनुमान जी को चिरकाल तक प्रसन्नता से जीवित रहने का वरदान दिया।
हनुमानजी से जुड़े प्रश्न और उत्तर
प्रश्न - हनुमानजी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर - हनुमानजी का जन्म त्रेता युग के अंतिम चरण में, चैत्र पूर्णिमा के दिन, मंगलवार को, चित्रा नक्षत्र में हुआ था। यह घटना 58 हजार 112 वर्ष पहले की है। उनका जन्म स्थान झारखंड राज्य के गुमला जिले के आंजन नामक गांव में बताया गया है।
प्रश्न - हनुमानजी के माता-पिता कौन थे?
उत्तर - हनुमानजी के पिता का नाम वानरराज केसरी था, और उनकी माता का नाम अंजनी था। पुराणों के अनुसार, वायु देव को हनुमानजी का आध्यात्मिक पिता माना जाता है, इसलिए उन्हें पवनपुत्र भी कहा जाता है।
प्रश्न - हनुमानजी का नाम "हनुमान" कैसे पड़ा?
उत्तर - जब हनुमानजी ने सूर्य को निगल लिया था, तब भगवान इंद्र ने उनके ठुड्डी पर प्रहार किया, जिससे उनकी ठुड्डी को नुकसान पहुंचा। ठुड्डी को संस्कृत में "हनु" कहा जाता है। इसी घटना के बाद से उनका नाम "हनुमान" पड़ा।
प्रश्न - हनुमानजी को श्री रामचंद्रजी से मृत्युदंड क्यों मिला था?
उत्तर - एक बार हनुमानजी ने दरबार में विश्वामित्र का अभिवादन नहीं किया, जिससे विश्वामित्र नाराज हो गए और उन्होंने रामचंद्रजी से हनुमान को मृत्युदंड देने की मांग की। रामचंद्रजी अपने गुरु विश्वामित्र की बात मानने के लिए बाध्य थे, लेकिन हनुमानजी की राम के नाम के जाप ने उन्हें बाणों से बचा लिया।
प्रश्न - हनुमानजी ने उड़ना कैसे सीखा?
उत्तर - हनुमानजी के गुरु पवन देव ने उन्हें उड़ना सिखाया। हनुमानजी ने सूर्य पुत्र शनि और इंद्र पुत्र जयंत से प्रभावित होकर उड़ने की कला सीखने की इच्छा व्यक्त की थी, जिसे पवन देव ने पूरा किया।
प्रश्न - हनुमानजी का रामायण और महाभारत में क्या योगदान था?
उत्तर - रामायण में हनुमानजी ने सीता माता की खोज में श्री राम की सहायता की और लंका विजय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महाभारत में, हनुमानजी भीमसेन के सौतेले बड़े भाई के रूप में प्रस्तुत किए गए हैं। भीमसेन हनुमानजी की पूंछ को हिला नहीं पाए थे, जिससे उन्होंने हनुमानजी की अद्वितीय शक्ति को स्वीकार किया।
प्रश्न - हनुमानजी के 12 नाम कौन से हैं और उनका क्या महत्व है?
उत्तर - हनुमानजी के 12 नाम हैं: हनुमान, रामेष्ट, उधिकर्मण, अंजनी पुत्र, वायुपुत्र, लक्ष्मण प्राण दाता, अमित विक्रम, दशग्रीवदर्पः, महाबली, सीता शोक विनाशक, फाल्गुन सखा, और पिंगाक्ष। हिन्दू पुराणों के अनुसार, इन नामों का नित्य स्मरण करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, और प्रातःकाल 11 बार स्मरण करने से दीर्घायु की प्राप्ति होती है।
प्रश्न - हनुमानजी की माता अंजनी वानरी कैसे बनी?
उत्तर - हनुमानजी की माता अंजनी, जिन्हें पहले पुंजिकस्थला के नाम से जाना जाता था, एक अप्सरा थीं। उन्हें दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण वानरी का रूप धारण करना पड़ा। बाद में, उन्होंने वानर श्रेष्ठ विराज से जन्म लिया और राजा केसरी से उनका विवाह हुआ। इसी कारण से वे वानरी के रूप में जानी जाती हैं।
प्रश्न - हनुमानजी को संकट मोचन क्यों कहा जाता है?
उत्तर - हनुमानजी को संकट मोचन कहा जाता है क्योंकि उन्होंने भगवान राम के मार्ग में आने वाले कई अभूतपूर्व संकटों को दूर किया। उन्होंने लक्ष्मणजी के प्राण बचाने के लिए संजीवनी बूटी लाने के लिए हिमालय की कठिन यात्रा की थी। हनुमानजी भक्तों के सभी संकटों को दूर करते हैं, इसलिए उन्हें संकट मोचन कहा जाता है।
प्रश्न - अन्य धर्मों में हनुमानजी का उल्लेख कैसे किया गया है?
उत्तर - हिंदू धर्म के अलावा, बौद्ध धर्म में तिब्बती और खोतानी संस्करणों में भी हनुमानजी का उल्लेख मिलता है। जैन धर्म में हनुमानजी को एक विद्याधर प्राणी के रूप में वर्णित किया गया है। सिख धर्म में भगवान राम को श्री रामचंदर के रूप में परिभाषित किया गया है और हनुमानजी की कहानी प्रभावशाली मानी गई है।
पूरब पश्चिम विशेष -
Baba Khatu Shyam | Avatar of Kalki | Shri Krishna