गंगा दशहरा (Ganga Dussehra) का पर्व ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष के दसवें दिन मनाया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन राजा भागीरथ (Raja Bhagirath) की तपस्या से प्रसन्न होकर माँ गंगा उनके पूर्वजों की शापित आत्माओं को शुद्ध करने के लिए पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं। गंगा दशहरा इस धरती पर गंगा नदी के आगमन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। पृथ्वी पर अवतरित होने के पहले माँ गंगा ब्रह्मा जी (Bhagwan Brahma) के कमंडल में निवास कर रही थीं। उसके बाद वो भगवान शिव (Lord Shiva) की जटाओं से होती हुई पृथ्वी पर अवतरित हुईं। ब्रह्मा जी के कमंडल में रहने के कारण उनके पास देवलोक की पवित्रता है। पृथ्वी पर उतरने के बाद देवलोक की पवित्रता उनके साथ आई। गंगा दशहरा का यह पर्व निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) के एक दिन पहले मनाया जाता है।
हर साल की तरह साल 2024 में गंगा दशहरा 16 जून को मनाया जाएगा। जिसका शुभ मुहूर्त सुबह 2:30 बजे प्रारंभ होगा तथा 17 जून को प्रातः 04:43 बजे समाप्त होगा। हस्त नक्षत्र 15 जून 2024 को सुबह 8:14 बजे शुरू होगा और अगले दिन 16 जून को प्रातः 11:13 पर समाप्त होगा।
गंगा दशहरा (Ganga Dussehra) का पर्व वैदिक पंचांग के अनुसार मनाया जाता है। यह वैदिक गणनाओं का प्रतीक है जो विचारों, कार्यों और वाणी से संबंधित दस पापों को धोने के लिए माँ गंगा की शक्ति को प्रदर्शित करता है। इस दिन गंगा नदी की पूजा अर्चना करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही गंगा स्त्रोत का पाठ करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। गंगा दशहरा का दिन किसी भी नई खरीदारी के लिए बेहद शुभ माना जाता है।
गंगा दशहरा के पवित्र मौके पर अधिकांश भक्त प्रयागराज, वाराणसी, ऋषिकेश और हरिद्वार जाते हैं। यहां पर गंगा नदी की जलधारा के समक्ष लोग अपने पितरों के लिए पूजा करते हैं। भक्त और पुजारी सभी मिलकर गंगा आरती करते हैं और माँ गंगा से अपने पूर्वजों से उद्धार के लिए प्रार्थना करते हैं।
गंगा एक बेहद पवित्र नदी है जिसे सनातन धर्मावलंबियों के बीच माँ का दर्जा प्राप्त है। गंगा दशहरा (ganga dussehra) के पावन मौके पर गंगा नदी के बहते हुए जल में भक्तगण हजारों दीपक प्रज्वलित करते हैं। गंगा नदी हिमलाय में गोमुख से निकलकर बंगाल की खाड़ी में समुद्र में मिल जाती है। यह नदी मानव जाति के जीवन और चेतना में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। माँ गंगा की आरती गोधूलि में पत्तों से लदी नौकाओं और नदी में बहाए जाने वाले फूलों से की जाती है। माँ गंगा की पूजा में उपयोग होने वाली सामग्री दस की गिनती में होती है। इस दिन माँ गंगा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए दस तरह की चीजों का दान करना चाहिए।
पौराणिक कथा के अनुसार राजा बली (King Bali) ने असीम शक्ति प्राप्त करके पृथ्वीलोक और देवलोक पर अपना अधिकार जमा लिया था। राजा बलि (Raja Bali) से छुटकारा प्राप्त करने के लिए देवराज इन्द्र (Indra) सहित सभी देवता भगवान विष्णु (Lord Vishnu) से मदद मांगने के लिए पहुंचे। तब भगवान विष्णु ने वामन (Vamana) रूप धारण कर लिया।
एक दिन राजा बली सुख-समृद्धि के लिए अश्वमेध यज्ञ करवा रहा था। इस यज्ञ में वह ब्राह्मणों को भोजन करवाने के साथ ही उन्हें दान दक्षिणा भी दे रहा था। तभी भगवान विष्णु वामन रूप में राजा बली के पास पहुंचे। जब राजा बली ने वामन रूप धारण किए हुए ब्राह्मण देवता से वरदान मांगने को कहा तब वामन देवता ने राजा से तीन पग भूमि दान में मांगी। यह सुनकर राजा बलि खुशी-खुशी तैयार हो गया। तब वामन रूप धारण किए हुए भगवान विष्णु ने अपना शरीर बढ़ाया। उन्होंने अपना शरीर इतना बढ़ा लिया कि पृथ्वी भी उनके सामने बौनी लगने लगी। तब वामन भगवान ने एक पग से पूरी धरती को माप लिया और जैसे ही देवलोक को मापने के लिए दूसरा पैर बढ़ाया तब ब्रह्मा जी (Lord Brahma) ने उनके पैर धोए उस जल को कमंडल में भर लिया। उस जल के तेज से ब्रह्मा जी के कमंडल में माँ गंगा का जन्म हुआ।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में सगर नामक प्रतापी राजा था। वह अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था, जिसके लिए उसने अश्वमेध यज्ञ (Ashvamedha Yagya) का आयोजन किया। जब यह बात देवराज इन्द्र को पता चली तो वो चिंता में पड़ गए, वों सोचने लगे कि यदि अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा स्वर्ग से गुजर गया तो राजा सगर (King Sagar) स्वर्ग के भी राजा हो जाएंगे। स्वर्गलोक गंवाने के भय से देवराज इन्द्र (Devraj Indra) ने अपना वेश बदलकर अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े को चुपचाप कपिल मुनी (Kapil Muni) के आश्रम में बांध दिया। इस समय कपिल मुनि ध्यान में थे।
जब घोड़ा चोरी होने की जानकारी राजा सगर को लगी तब उन्होंने अपने साठ हजार पुत्रों को घोड़े को ढूढ़ने के लिए भेज दिया। उन्होंने अपना अश्वमेघ घोड़ा कपिल मुनि (Kapil Muni) के आश्रम में देखा। यह देखते ही वह युद्ध की अभिलाषा से आश्रम में घुस गए। ध्यान में लीन जब कपिल मुनि को शोर सुनाई दिया तो उनका ध्यान टूट गया और वो घटनास्थल पर पहुंचे। जहां राजा सगर के पुत्रों ने घोड़े की चोरी का दोष कपिल मुनि के ऊपर मढ़ना शुरू कर दिया। यह सब देखकर महात्मा अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने श्राप देकर सगर के सभी पुत्रों को भस्म कर दिया।
अंतिम संस्कार के बिना मृत्यु को प्राप्त हुए सगर के पुत्रों को मोक्ष नहीं मिला। तब सगर के कुल में जन्म लेने वाले राजा भगीरथ (Raja Bhagiratha) ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की तपस्या की। राजा भगीरथ की तपस्या से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और उनके सामने प्रकट हुए। भगवान ने राजा से वरदान मांगने को कहा, तब राजा ने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए माँ गंगा (Maa Ganga) को धरती पर लाने की प्रार्थना की। लेकिन माँ गंगा इस धरती पर आने के लिए तैयार नहीं थी, वो ब्रह्मा जी के कमंडल में वास कर रही थीं। इसके बाद माँ गंगा ने बताया कि यदि वो पृथ्वी पर आईं तो धरती के लिए उनका वेग सहन करना असंभव हो जाएगा। वो अपने रास्ते में आने वाली सभी चीजों को बहा ले जाएंगी। तब भगवान विष्णु ने इस समस्या का समाधान करने के लिए महादेव (Mahadev) से कहा। तब भगवान शिव (Lord Shiva) ने कहा कि वो गंगा को अपनी जटाओं में समाहित कर लेंगे। जिससे धरती का विनाश होने से बच जाएगा। इसके बाद माँ गंगा ब्रह्मा जी के कमंडल से निकलकर भगवान शिव की जटाओं में समाहित हो गईं। वहां से होते हुए वो इस धरती पर अवतरित हुईं और उन्होंने राजा सगर के सभी पुत्रों को मोक्ष प्रदान किया।
प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न: गंगा दशहरा कब है?
उत्तर: साल 2024 में गंगा दशहरा 16 जून को मनाया जाएगा।
प्रश्न: धरती पर माँ गंगा को लाने का श्रेय किसको दिया जाता है?
उत्तर: धरती पर माँ गंगा को राजा भागीरथ लेकर आए थे।
प्रश्न: धरती पर आने के पहले माँ गंगा का निवास कहाँ था?
उत्तर: धरती पर आने के पहले माँ गंगा ब्रह्मा जी के कमंडल में निवासरत थीं।
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