Thursday, December 26

गणेश चालीसा (Ganesh Chalisa)

Ganesh Chalisa

श्री गणेश चालीसा (Ganesh Chalisa)

गणेश चालीसा (Ganesh Chalisa), भगवान गणेश (Bhagwan Ganesh) को समर्पित एक भक्ति भजन है। चालीस छंदों (चालीसा) के रूप में रचित, यह भगवान गणेश के गुणों और दिव्य गुणों का गुणगान करता है। भगवान गणेश को बाधाओं को दूर करने वाले और शुभता प्रदान करने वाले देवता के रूप में जाना जाता है।

भगवान गणेश (Bhagwan Ganesh) को व्यापक रूप से हाथी के सिर वाले भगवान के रूप में पूजा जाता है, उन्हें ज्ञान और बुद्धि का भगवान (Gyan aur Budhhi ke Bhagwan) माना जाता है। उन्हें कला, विज्ञान और ज्ञान का संरक्षक देवता भी माना जाता है। भक्त किसी भी नए उद्यम या महत्वपूर्ण उपक्रम को शुरू करने से पहले उनका आशीर्वाद लेते हैं, बाधाओं पर काबू पाने और सफलता प्राप्त करने में उनका मार्गदर्शन और सहायता मांगते हैं।

गणेश चालीसा लिरिक्स (Ganesh Chalisa Lyrics)

गणेश चालीसा (Ganesh Chalisa), भगवान गणेश (Lord Ganesha) के लिए एक शक्तिशाली प्रार्थना के रूप में कार्य करती है, यह चालीसा उनके प्रति भक्ति और श्रद्धा व्यक्त करती है। यह चालीसा उनके परोपकार, ज्ञान और सर्वव्यापकता सहित उनके दिव्य गुणों का वर्णन करती है। माना जाता है कि विश्वास और भक्ति के साथ चालीसा का पाठ करने से भगवान गणेश (Bhagwan Ganesh) का आशीर्वाद प्राप्त होता है, बाधाएं दूर होती हैं और आध्यात्मिक विकास और भौतिक समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।

गणेश चालीसा (Ganesh Chalisa) एक पवित्र भजन है जो भगवान गणेश की स्तुति और वंदना करता है। साथ ही यह भजन बाधाओं को दूर करने वाले और दिव्य कृपा प्रदान करने वाले देवता के रूप में गणेश जी की भूमिका को उजागर करता है। यह जीवन के सभी पहलुओं में उनका आशीर्वाद, मार्गदर्शन और सुरक्षा पाने के लिए भक्तों द्वारा पढ़ी जाने वाली एक प्रार्थना है। चालीसा भक्ति, विश्वास और आंतरिक शक्ति की भावना पैदा करती है, लोगों को चुनौतियों से उबरने और दिव्य समर्थन और शुभता के साथ अपनी यात्रा शुरू करने के लिए प्रेरित करती है।

श्री गणेश चालीसा (Shri Ganesh Chalisa)

दोहा

जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल।

विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥

(गुणों से सम्पन्न और मनोहर रूप वाले भगवान गणपति (Bhagwan Ganpati) की जय हो। कवि आपको कृपालु बताते हैं। आप लोगों के कष्टों का हरण करके सबका मंगल करते हैं। माता पार्वती (Maata Parvati) के पुत्र भगवना गणेश की जी हो)

चौपाई

जय जय जय गणपति गणराजू। मंगल भरण करण शुभ काजू॥

जय गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्धि विधाता॥

वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥

राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥

(हे देवताओं के राजा गणपति, आप सभी कार्यों को शुभ कल्याणकारी करने वाले हैं। आपकी जय हो। आप घर-घर में सुख प्रदान करने वाले हैं। आपने हाथी जैसा विशालकाय शरीर धारण किया हुआ है। हे भगवन, आपकी जय हो। आप बुद्धि देने वाले हैं और आप पूरे विश्व के विनायक यानि विशिष्ट नेता हैं। आपकी सूंड हाथी के सूंड जैसी मुड़ी हुई है। यह बेहद सुहावनी प्रतीत हो रही है। साथ ही आपके मस्तक पर तिलक अत्यंत आकर्षक लग रहा है। आपकी छाती पर मणि मोतियों की माला है, आपकी आंखें बड़ी-बड़ी हैं और आपके सिर पर सोने का मुकुट सुशोभित हो रहा है)

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥

सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित॥

धनि शिवसुवन षडानन भ्राता। गौरी ललन विश्व-विख्याता॥

ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे। मूषक वाहन सोहत द्वारे॥

(हे गणराज! आपके हाथों में पुस्तक, कुठार और त्रिशूल मौजूद हैं। आपको सुगंधित फूल चढ़ाए जाते हैं और लड्डुओं का भोग लगाया जाता है। आपके तन पर सुसज्जित पीले रंग के वस्त्र अत्यंत आकर्षक लग रहे हैं। आपकी चरण पादुकाएं भी ऐसी हैं कि उन्हें देखकर साधुओं का मन प्रसन्न हो जाता है। भगवान शिव (Bhagwan Shiv) के पुत्र और कार्तिकेय (Kartikey) के भाई आप धन्य हैं। माँ गौरी के पुत्र आपकी ख्याति चारो ओर फैली हुई है। आपकी पत्नियां ऋद्धि-सिद्धि हमेशा आपकी सेवा में उपस्थित रहती हैं। साथ ही आपका वाहन मूषक आपके द्वार पर हमेशा उपस्थित रहता है)

कहौ जन्म शुभ-कथा तुम्हारी। अति शुचि पावन मंगलकारी॥

एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी॥

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरि द्विज रुपा॥

अतिथि जानि कै गौरि सुखारी। बहुविधि सेवा करी तुम्हारी॥

(हे भगवान गणेश! आपकी जन्मकथा को कहना और सुनना बेहद मंगलकारी होता है। एक समय माता गौरी (Mata Gauri) ने पुत्र प्राप्ति के लिए भारी तपस्या की। जब उनकी तपस्या पूरी हो गई तब आप वहां ब्राह्मण (Brahman) के रूप में प्रकट हुए। आपको मेहमान मानकर माता गौरी ने आपकी सेवा की)

अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥

मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला। बिना गर्भ धारण, यहि काला॥

गणनायक, गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम, रुप भगवाना॥

अस कहि अन्तर्धान रुप है। पलना पर बालक स्वरुप है॥

(माँ गौरी (Maa Gauri) की सेवा से प्रसन्न होकर आपने उनको वरदान दिया। आपने माँ गौरी को आशीर्वाद देते हुए कहा कि हे माँ, आपने पुत्र प्राप्ति के लिए जो कठोर तपस्या की है। उसके परिणामस्वरूप आपको बिना गर्भ धारण किए ही बुद्धिमान बालक की प्राप्ति होगी। वह बालक सभी देवताओं का नायक कहलाएगा। वो बालक गुणों व ज्ञान का निर्धारण करने वाला होगा, और पूरा संसार भगवान के प्रथम रुप में उसकी पूजा करेगा। माँ गौरी को यह आशीर्वाद देकर आप वहां से अंतर्धान हो गए और कुछ ही समय पश्चात पालने में बालक के स्वरूप में आ गए)

बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना॥

सकल मगन, सुखमंगल गावहिं। नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं॥

शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं। सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं॥

लखि अति आनन्द मंगल साजा। देखन भी आये शनि राजा॥

(हे गजानन! माँ गौरी (Maa Gouri) ने जैसे ही आपको उठाया, आपने रोना शुरू कर दिया। माँ गौरी आपको एकटक निहारती रही। आपका चेहरा बहुत ही सुंदर था। आपके जन्म के उपरांत चारों ओर सभी लोग खुशियां मनाने लगे। देवताओं ने भी आकाश से फूलों की वर्षा की। भगवान शिव (Lord Shiva) और माता उमा ( Mata Uma) दान देने लगी। ऋषि, मुनि और देवता आपके दर्शन के लिए आने लगे। आपको देखकर हर कोई खुशी से झूम रहा था, आपको देखने के लिए शनिदेव (Lord Shani) भी आए थे)

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं। बालक, देखन चाहत नाहीं॥

गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो। उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो॥

कहन लगे शनि, मन सकुचाई। का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई॥

नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ। शनि सों बालक देखन कहाऊ॥

(हे गणनायक! शनिदेव (Shani dev) आपको देखने तो आए थे, लेकिन वो मन ही मन घबरा रहे थे और नवजात अवस्था में आपको देखना नहीं चाह रहे थे। शनिदेव को इस तरह से सकुचाते हुए देखकर माँ गौरी नाराज हो गईं। उन्होंने शनिदेव से कहा कि हमारे यहां बच्चे के जन्म के उत्सव को देखकर आप खुश नहीं हुए हो। इस पर शनीदेव ने माँ गौरी (Gauri Maa) से कहा कि मुझे नजवात बालक दिखाकर क्या करोगी? मुझे इस बालक को दिखाने से कुछ अनिष्ट हो जाएगा। शनिदेव की इन बातों से भी माँ पार्वती (Maa Parvati) नहीं मानी। उन्होंने शनिदेव से बालक का चेहरा देखने को कहा)

पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा। बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा॥

गिरिजा गिरीं विकल हुए धरणी। सो दुख दशा गयो नहीं वरणी॥

हाहाकार मच्यो कैलाशा। शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा॥

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो। काटि चक्र सो गज शिर लाये॥

(जैसे ही शनिदेव (Shani Dev) ने नवजात बालक को देखा। तो बालक का शीश आकाश में उड़ गया। (ब्रह्मवैवर्त पुराण) इसके बाद जैसे ही माँ पार्वती ने अपने बालक को बिना सिर के देखा तो वो मूर्छित होकर भूमि पर गिर पड़ी। उस समय माँ पार्वती को इतना दुख हुआ जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता। इस घटना के बाद पूरे कैलाश पर्वत (Kailash Parvat) पर हाहाकार मच गया। सभी लोग इस बात की चर्चा कर रहे थे कि शनिदेव (Shani Dev) ने शिव-पार्वती (Shiv-Parvati) के पुत्र का नाश कर दिया। यह सूचना पाकर भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) तुरंत ही गरुड़ पर सवार हुए और सुदर्शन चक्र से हाथी का शीश काटकर उसे अपने साथ लेकर कैलास पर्वत पर पहुंच गए)

बालक के धड़ ऊपर धारयो। प्राण, मंत्र पढ़ि शंकर डारयो॥

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे। प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वन दीन्हे॥

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा। पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा॥

चले षडानन, भरमि भुलाई। रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई॥

(हाथी के उस सिर को भगवान विष्णु (Lord Vishnu) ने बालक के धड़ के ऊपर रख दिया। इसके बाद शिव जी (Lord Shiva) ने अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए कुछ मंत्र पढे और बालक के शरीर में प्राण डाले। जैसे ही बालक जीवित हो गया। तैसे ही भगवान महादेव (Bhagwan Mahadev) ने आपका नाम गणेश रखा। इसके साथ ही उन्होंने आपको वरदान दिया कि इस संसार में हर कार्य के पहले आपकी पूजा की जाएगी। बाकी देवताओं ने भी प्रसन्न होकर आपको बुद्धि और निधि समेत अनेक वरदान दिये। इसके बाद महादेव कार्तिकेय के साथ आपकी परीक्षा लेने के लिए तैयार हुए। तब उन्होंने आप दोनों को पूरी पृथ्वी की परिक्रमा लगाने के लिए कहा। पिता जी का आदेश सुनते ही भाई कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा लगाने के लिए निकल गए)

धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे। नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें। तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥

तुम्हरी महिमा बुद्ध‍ि बड़ाई। शेष सहसमुख सके न गाई॥

मैं मतिहीन मलीन दुखारी। करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी॥

(कार्तिकेय को पृथ्वी की परिक्रमा लगाने के लिए इस तरह से जाते देखकर आपने अपना दिमाग लगाया और अपने माता पिता के पैर छूकर उनके ही सात चक्कर लगाये। भगवान आपकी महिमा और बुद्धि की बड़ाई तो हजारों मुखों से भी नहीं की जा सकती। मैं मूर्ख, पापी और दुखी प्राणी कैसे आपकी पूजा करुं)

भजत रामसुन्दर प्रभुदासा। जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा॥

अब प्रभु दया दीन पर कीजै। अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै॥

(हे लंबोदर! (Lambodar) आपका दास रामसुन्दर आपका ही ध्यान करता है। इस दास की दुनिया तो प्रयाग का ककरा गांव हैं। जहां दुर्वासा जैसे ऋषि हुए हैं। भगवान, दिन दुखियों पर दया कीजिए और उन्हें अपनी शक्ति व भक्ति दीजिए)

दोहा

श्री गणेश यह चालीसा। पाठ करै कर ध्यान

नित नव मंगल गृह बसै। लहे जगत सन्मान॥

सम्वत अपन सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।

पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश॥

(जो भक्त भगवान गणेश (Bhagwan Ganesha) की इस चालीसा का ध्यान से पाठ करते हैं, उनके घर में सुख शांति आती है और उन्हें समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। हजारों संबंधों का निर्वाह करते हुए भगवान गणेश की यह चालीसा ऋषि पंचमी (Rishi Panchmi) के दिन पूरी हुई)

निष्कर्ष:

गणेश चालीसा (Shree Ganesh Chalisa) एक भक्तिपूर्ण भजन है। यह चालीसा बाधाओं को दूर करने वाला और शुभता प्रदान करने वाला है। चालीसा में चालीस छंद शामिल हैं जो भगवान गणेश के प्रति समर्पण, कृतज्ञता और श्रद्धा व्यक्त करते हैं।

गणेश चालीसा (Shri Ganesh Chalisa), भगवान गणपति (Bhagwan Ganpati) को गुणों, बुद्धि, ज्ञान और दिव्य कृपा के अवतार के रूप में चित्रित करती है। यह चालीसा बाधाओं को दूर करने वाले और आशीर्वाद और समृद्धि प्रदान करने वाले भगवान के रूप में गणेश जी की भूमिका पर प्रकाश डालता है। चालीसा के पाठ के माध्यम से भक्त अपने प्रयासों, आध्यात्मिक यात्राओं और दैनिक जीवन में भगवान गणेश का आशीर्वाद और हस्तक्षेप चाहते हैं।

यह चालीसा भगवान गणपति (Bhagwan Ganpati Chalisa) की कृपा पाने के लिए भक्ति, ज्ञान और वैराग्य के महत्व पर भी जोर देता है। यह बुद्धि और विवेक के दाता के रूप में उनकी भूमिका पर प्रकाश डालता है, आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देता है और धार्मिकता के मार्ग पर भक्तों का मार्गदर्शन करता है।

विश्वास और भक्ति के साथ गणेश चालीसा का पाठ (Shri Ganesh Chalisa ka Paath) करने से भगवान गणपति का आशीर्वाद और सुरक्षा प्राप्त होती है। चालीसा को एक शक्तिशाली प्रार्थना के रूप में माना जाता है जो इसके पाठकों के हृदय में भक्ति, साहस और दृढ़ संकल्प की भावना पैदा करती है।

गणेश चालीसा (Ganesh Chalisa) भगवान गणपति (Bhagwan Ganpati) के साथ एक दिव्य संबंध के रूप में कार्य करता है, यह भक्तों को अपने जीवन के हर पहलू में भगवान गणपति की दिव्य उपस्थिति और मार्गदर्शन को स्वीकार करते हुए भक्ति, ज्ञान और विनम्रता के साथ जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है।

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