सनातन धर्म (Sanatan Dharma) में देवी लक्ष्मी (Devi Lakshmi) को धन और समृद्धि की देवी (goddess of prosperity) माना जाता है। कहा जाता है कि उनकी दिव्य उपस्थिति उनके भक्तों के जीवन में सौभाग्य, सफलता और प्रचुरता लाती है। अपनी सुंदरता के लिए जानी जाने वाली देवी लक्ष्मी को अक्सर खिले हुए कमल पर बैठे या खड़े हुए चित्रित किया जाता है, जो पवित्रता और ज्ञान का प्रतीक है। वह उत्तम आभूषणों से सुसज्जित हैं, जीवंत रेशमी वस्त्र पहने हुए हैं और अपने हाथों में कमल के फूल रखती हैं। यह दृश्य आध्यात्मिक ज्ञान के साथ पवित्रता को दर्शाता है।
देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की पत्नी हैं। इसके साथ ही वो पार्वती (Goddes Parvati) और सरस्वती (Goddes Saraswati) के साथ त्रिदेवियों (TriDevi) में से एक देवी हैं। दीपावली के त्योहार में देवी लक्ष्मी की भगवान गणेश (Lord Ganesha) के साथ पूजा की जाती है। इस पूजा का उल्लेख सबसे पहले ऋग्वेद के श्री सूक्त (Shri Sukta) में मिलता है। इस पूजा के दौरान श्री सूक्त का पाठ भी किया जाता है।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, उनके जन्म की कहानी समुद्र के मंथन (Samudra Manthan) से जुड़ी हुई है। देवता और असुर अमरता का अमृत प्राप्त करना चाहते थे, जो समुद्र की गहराई में छिपा हुआ था। इस अमृत को प्राप्त करने के लिए उन्होंने एक संयुक्त प्रयास शुरू किया, जिसमें मंदार पर्वत (Mandar Parvat) को मंथन की छड़ी के रूप में और नाग राजा वासुकी (Naag Raj Vasuki) को रस्सी के रूप में इस्तेमाल किया।
जैसे ही समुद्र का मंथन शुरू हुआ, समुद्र से विभिन्न दिव्य प्राणी और खजाने निकले। इस दिव्य दृश्य के बीच, देदीप्यमान आभूषणों से सुसज्जित, भव्य वस्त्रों में लिपटी हुई और हाथ में कमल के फूल लिए हुए, दिव्य सुंदरता और कृपा बिखेरते हुए देवी लक्ष्मी हुए प्रकट हुईं।
देवता देवी लक्ष्मी (Devi Lakshmi) को देखकर मंत्रमुग्ध हो गए और उनके बीच देवी लक्ष्मी को जीतने के लिए एक प्रतियोगिता शुरू हो गई। अंत में देवी लक्ष्मी ने ब्रह्मांड के संरक्षक, भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) को अपने दिव्य जीवनसाथी के रूप में चुना। तब से, देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु के निवास क्षीरसागर (Kshira Sagara) में निवास करती हैं, और भक्तों पर अपना आशीर्वाद बरसाती हैं।
भक्त अपने जीवन में दिव्य कृपा के लिए देवी लक्ष्मी का सम्मान और पूजा करते हैं। प्रार्थनाओं, अनुष्ठानों और भक्ति के कार्यों के माध्यम से, वे अपना आभार व्यक्त करते हैं और भौतिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक कल्याण के लिए उनका आशीर्वाद मांगते हैं।
देवी लक्ष्मी (Devi Lakshmi) के अनेक स्वरूप इस ब्रह्मांड में मौजूद हैं। लेकिन धर्म ग्रंथों एवं पुराणों में मां लक्ष्मी के 8 स्वरूपों का वर्णन है, जिन्हें अष्ट लक्ष्मी (ashta lakshmi) कहा जाता है। इन स्वरूपों को आदि लक्ष्मी, धन लक्ष्मी, धान्य लक्ष्मी, गज लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, वीर लक्ष्मी, जय लक्ष्मी और विद्या लक्ष्मी के नाम से जाना जाता है।
जिस स्वरूप को आमतौर पर पूजा जाता है उसमें देवी लक्ष्मी कमल के आसन पर विराजमान है और दो हाथी उनका अभिषेक कर रहे हैं। कमल को कोमलता का प्रतीक माना जाता है। देवी के एक मुख है और चार हाथ हैं। यह हाथ दूरदर्शिता, दृढ़ संकल्प, श्रमशीलता एवं व्यवस्था शक्ति को प्रदर्शित करते हैं। वो दो हाथों में कमल का फूल लिए हुए हैं जो सौन्दर्य और प्रमाणिकता के प्रतीक हैं। साथ ही दान मुद्रा तथा आशीर्वाद मुद्रा में अपने भक्तों पर कृपा बरसाती हुई दिखाई देती हैं। उनका वाहन उल्लू है जो रात्रि के अंधेरे में भी देखने की क्षमता का प्रतीक है।
देवी लक्ष्मी (Mata Lakshmi) को प्रसन्नता की, उल्लास की, विनोद की देवी माना जाता है। कहा जाता है कि जो भक्त ईमानदारी और भक्ति के साथ लक्ष्मी जी की पूजा (Lakshmi ji ki Puja) करते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं, उन्हें फलदायी परिणाम प्राप्त होते हैं। उनके घर में हंसने-हंसाने का वातावरण बना रहता है।
जहां देवी लक्ष्मी की कृपा रहती है वहां स्वच्छता, प्रसन्नता, सुव्यवस्था, श्रमनिष्ठा एवं मितव्ययिता का वातावरण बना रहता है। देवी लक्ष्मी दिव्य कृपा से अपने भक्तों के भीतर प्रेम, करुणा, कृतज्ञता और उदारता जैसे गुणों का संचार करती हैं। यह आध्यात्मिक पोषण, भौतिक संपदा से परे, तृप्ति और खुशी की गहरी भावना लाता है।
भक्त मानते हैं कि लक्ष्मी जी से उन्हें जो फल मिलता है, वह धन लाभ से भी आगे जाता है। वे अपने कार्यों को मूल्यों और गुणों के साथ संरेखित करने के महत्व को स्वीकार करते हैं। अटूट विश्वास और भक्ति के साथ, भक्तों का मानना है कि लक्ष्मी जी का आशीर्वाद उन्हें समृद्ध और पूर्ण अस्तित्व की ओर ले जाता है।
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता ॥
उमा, रमा, ब्रम्हाणी, तुम ही जग माता ।
सूर्य चद्रंमा ध्यावत,नारद ऋषि गाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता....॥
दुर्गा रुप निरंजनि, सुख-संपत्ति दाता ।
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता....॥
तुम ही पाताल निवासनी, तुम ही शुभदाता ।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशनी, भव निधि की त्राता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता....॥
जिस घर तुम रहती हो, ताँहि में हैं सद्गुण आता ।
सब सभंव हो जाता, मन नहीं घबराता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता....॥
तुम बिन यज्ञ ना होता, वस्त्र न कोई पाता ।
खान पान का वैभव, सब तुमसे आता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता....॥
शुभ गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि जाता ।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता....॥
महालक्ष्मी जी की आरती, जो कोई नर गाता ।
उँर आंनद समाता, पाप उतर जाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता....॥
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता ॥
देवी लक्ष्मी से जुड़े प्रश्न और उत्तर
Q: देवी लक्ष्मी को किस रूप में चित्रित किया जाता है?
A: देवी लक्ष्मी को अक्सर खिले हुए कमल पर बैठे या खड़े हुए चित्रित किया जाता है। वह उत्तम आभूषणों से सुसज्जित होती हैं और अपने हाथों में कमल के फूल रखती हैं।
Q: देवी लक्ष्मी का जन्म कैसे हुआ था?
A: हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी लक्ष्मी का जन्म समुद्र मंथन से हुआ था। देवता और असुर अमरता का अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन कर रहे थे, तभी देवी लक्ष्मी प्रकट हुईं।
Q: देवी लक्ष्मी के कौन-कौन से स्वरूप हैं?
A: देवी लक्ष्मी के आठ स्वरूपों को अष्ट लक्ष्मी कहा जाता है। इनमें आदि लक्ष्मी, धन लक्ष्मी, धान्य लक्ष्मी, गज लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, वीर लक्ष्मी, जय लक्ष्मी, और विद्या लक्ष्मी शामिल हैं।
Q: देवी लक्ष्मी की पूजा कब की जाती है?
A: देवी लक्ष्मी की पूजा विशेष रूप से दीपावली के त्योहार में भगवान गणेश के साथ की जाती है। इस पूजा का उल्लेख ऋग्वेद के श्री सूक्त में मिलता है।
Q: देवी लक्ष्मी की पूजा से क्या लाभ होता है?
A: देवी लक्ष्मी की पूजा करने से घर में स्वच्छता, प्रसन्नता, सुव्यवस्था, श्रमनिष्ठा, और मितव्ययिता का वातावरण बना रहता है। भक्तों को भौतिक, भावनात्मक, और आध्यात्मिक कल्याण की प्राप्ति होती है।
Q: देवी लक्ष्मी का वाहन क्या है?
A: देवी लक्ष्मी का वाहन उल्लू है, जो रात्रि के अंधेरे में भी देखने की क्षमता का प्रतीक है।
पूरब पश्चिम विशेष -
Navadurga | Maa Sita | Maa Kaali | Goddess Durga Maa
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