देवी दुर्गा (Durga Maa)

Durga Maa

दुर्गा मां (Goddess Durga Maa)

हिंदू धर्म में पूजे जाने वाले देवी देवताओं में मां दुर्गा (Durga Maa) का स्थान उच्च है। पुराणों के अनुसार मां दुर्गा के नौ रूप है। माता दुर्गा (Mata Durga) शक्ति कि देवी माता पार्वती के ही अनेक रूपों में से एक है। दानवों के संहार के लिए मां दुर्गा एवं इनके अन्य रूप अवतरित हुए।

मां दुर्गा के नौ अवतार का वर्णन निम्नलिखित है - (Avatar of Goddess Durga)

शैलपुत्री (Shailputri)

मां दुर्गा का प्रथम रूप है शैलपुत्री देवी। शैलपुत्री नाम हिमालय की पुत्री होने के आधार पर दिया गया। राजा हिमालय व उनकी पत्नी मेनाका ने तपस्या करने के बाद आशीर्वाद स्वरुप माता दुर्गा को अपनी पुत्री के रूप में प्राप्त किया। इस अवतार में दुर्गा जी का वाहन बैल है।

ब्रह्मचारिणी (Brahmacharini)

माता दुर्गा का यह रूप शिवजी (Bhagwan Shiv) को पाने के लिए कठिन तपस्या करने वाली देवी के रूप में वर्णित है। मुक्ति प्राप्त करने के लिए माता दुर्गा ने ब्रह्म ज्ञान प्राप्त किया जिसके कारण दुर्गा मां को ब्रह्मचारिणी नाम से संबोधित किया गया।

चंद्रघंटा (Chandra Ghanta)

शक्ति की देवी मां दुर्गा का तीसरा रूप चंद्रघंटा है। भक्तों को असीम शक्ति देने वाला मां दुर्गा का मस्तक तेज स्वर्ण की भांति प्रतीत होता है। चंद्रघंटा अवतार में माता का वाहन सिंह है। कथाओं के अनुसार चंद्रघंटा रूप का स्मरण करने से जीवन में सुख समृद्धि आती है।

कुष्मांडा (Kushmanda)

देवी दुर्गा का चौथा रूप माता कुष्मांडा के नाम से प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि जब पृथ्वी पर प्रत्येक जगह अंधकार था तब माता कुष्मांडा ने ही इस सृष्टि का श्रृजन किया। माता कुष्मांडा सृष्टि में ऊर्जा का सृजन करती है। 8 हाथ होने के कारण माता कुष्मांडा को अष्टभुजा देवी के नाम से भी पुकारा जाता है। कथाओं के अनुसार माता कुष्मांडा का स्मरण करने से भक्तों के रोग तथा कष्ट दूर होते हैं।

स्कंदमाता (Skandamata)

दुर्गा देवी के पांचवी अवतार के रूप में स्कंदमाता का वर्णन मिलता है। पुराणों के अनुसार देवता और दानव के मध्य युद्ध के दौरान देवताओं को एक उचित पथ प्रदर्शक की जरूरत थी तब माता दुर्गा ने स्कंदमाता के रूप में अवतार लिया तथा देवताओं की समस्या का समाधान किया था।

कात्यायनी (Katyayani)

मां कात्यायनी देवी दुर्गा का छठवां अवतार है। ब्रह्मा (Brahma) विष्णु (Vishnu) महेश (Mahesh) के शक्ति से उत्पन्न मां कात्यायनी, महिषासुर के वध के लिए अवतार लिया था । दुर्गा मां की पूजा करने वाले प्रथम व्यक्ति महर्षि कात्यायना थे। उन्हीं के नाम पर मां दुर्गा का नाम कात्यायनी पड़ा।

कालरात्रि (Kalaratri)

मां दुर्गा का सातवां रूप मां कालरात्रि के नाम से जाना जाता है। मां कालरात्रि अपने भक्तों को निडरता प्रदान करती हैं। माता का यह रूप अत्यंत भयावह है। इस रूप के कारण कालरात्रि अवतार का दूसरा नाम भायांकारी भी है। कथाओं के अनुसार माता दुर्गा के इस रूप की पूजा करने से भूत ,पिचास, प्राकृतिक आपदा एवं अन्य भयों से मुक्ति मिलती है।

महागौरी (Mahagauri)

मां दुर्गा का आठवां रूप देवी महागौरी के नाम से जाना जाता है। देवी पार्वती के सांवले रंग के कारण महादेव (Mahadev) इन्हें काल के नाम से भी पुकारा करते थे। महागौरी रूप की आराधना करने से भक्तों को किसी भी भ्रम से मुक्ति मिलती है तथा उनके जीवन में फैले हुए कष्ट के जाल कट जाते हैं।

सिद्धिदात्री (Siddhidatri)

मां दुर्गा का नवा एवं अंतिम रूप सिद्धिदात्री के रूप से जाना जाता है। सिद्धिदात्री की अनुकंपा से ही शिव जी ने अर्धनारीश्वर का वेश धारण किया था। सिद्धिदात्री माता का आसन कमल का फूल है। कथाओं के अनुसार माता सिद्धिदात्री अपने भक्तों को सिद्धि प्रदान करती हैं तथा उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।

नोट- हिंदू पुराणों के अनुसार माता पार्वती के नौ रूपों (Mata Parvati ke 9 roop) को एक साथ संदर्भित करने के लिए नवदुर्गा (Navdurga) शब्द का उपयोग किया जाता है। मां दुर्गा के नौ रूपों को पाप विनाशिनी के नाम से भी जाना जाता है। इन नौ रूपों में मां के अलग-अलग वाहन तथा अलग-अलग अस्त्र-शस्त्र है।

कनकदुर्गा कथा (Kanakadurga story)

दुर्गा मां के सभी रूपों के पीछे सृष्टि का हित निहित था। प्रत्येक रूप में मां दुर्गा ने सृष्टि को अत्याचारों से बचाया। कनक दुर्गा मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाएं इस प्रकार है-

कथाओं के अनुसार राक्षसों ने अपने शक्ति प्रदर्शन द्वारा सृष्टि पर अत्याचार करना प्रारंभ कर दिया। तब इन राक्षसों के अंत के लिए देवी शक्ति दुर्गा ने अलग-अलग रूप धारण किए। उन्होंने सुमन सुंदर नामक दानवों को मारने के लिए कौशिकी, महिषासुर के अंत के लिए महिषासुरमर्दिनि, दुर्गामासुर के अंत के लिए शाकंभरी इत्यादि रूप धारण किए। ऐसा कहा जाता है कि माता कनक दुर्गा ने अपने भक्त कीलाडू को पर्वत बन कर रहने का आदेश दिया, जिससे कि माता वहां ऊंचा पर्वत पर निवास कर सकें। महिषासुर का अंत करते हुए इंद्रकीलाद्री पर्वत पर 8 हाथों वाली शेर पर सवार दुर्गा मां की मूर्ति को देखा जा सकता है। इंद्रदेव का भ्रमण स्थान होने के कारण इस पर्वत का नाम इंद्रकीलाद्री पड़ गया।

शाकंभरी कथा (Shakambhari Katha)

किंवदंतियों के अनुसार पृथ्वी पर वर्षा ना होने के अभाव में समस्त पृथ्वी वासी मरने लगे थे। चारों तरफ हाहाकार मच गया। तब मुनियों ने हिमालय पर्वत पर देवी भगवती की वंदना की। जिससे भुवनेश्वरी देवी ने शताक्षी देवी का अवतार लेकर समस्त सृष्टि की रक्षा की थी। माता के इस अवतार ने सृष्टि की रक्षा की और यह अवतार शाकंभरी देवी के नाम से विख्यात हुआ। दुर्गामासुर के वध करने के पश्चात इन्हें दुर्गा नामक नाम से भी जाना गया।

विजया देवी (Vijaya Devi)

विजया देवी नाम से विख्यात मां दुर्गा के नाम का अर्थ है विजय की देवी। जब जब पृथ्वी पर अत्याचारी दानवों ने अपने आतंक से सज्जनों को आतंकित किया तब मां दुर्गा ने अनेक अवतार लेकर सृष्टि की सुरक्षा की तथा दानव का अंत किया। मां दुर्गा के हर रूप में सज्जनों की विजय छुपी हुई है। माता का प्रत्येक रूप अत्याचारों पर विजय प्राप्त किया है इस कारण से मां दुर्गा को कथाओं में विजया देवी अर्थात विजय की देवी के नाम से भी जाना जाता है।

श्री शांतादुर्गा मंदिर एवं उससे जुड़ी कहानी (Shri Shantadurga Temple and the story related to it)

गोवा की राजधानी पणजी से 30 किलोमीटर की दूरी पर पोडा तालुका के कलम नामक स्थान में श्री शांतादुर्गा मंदिर स्थित है। यह ब्राह्मण समुदाय एवं देवचंद समुदाय से संबंधित एक व्यक्तिगत मंदिर हैं। इस मंदिर के बारे में प्रचलित कथा कुछ इस प्रकार है-

एक बार भगवान शिव और भगवान विष्णु के मध्य युद्ध छिड़ गया था। तब ब्रह्मा जी के आदेशानुसार माता पार्वती ने इस युद्ध में हस्तक्षेप किया। भगवान शिव और भगवान विष्णु के मध्य युद्ध को समाप्त करने के लिए माता पार्वती ने शांतादुर्गा के रूप में भगवान शिव को बाएं हाथ पर तथा भगवान विष्णु को दाएं हाथ पर उठा लिया। इस प्रकार दोनों देवताओं के मध्य चल रहा युद्ध समाप्त हो गया। मां दुर्गा का यह रूप श्री शांतादुर्गा के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

दुर्गा पूजा की विशेषताएं एवं महत्व (Features and Importance of Durga Puja)

दुर्गा पूजा (Durga Puja) का त्यौहार हिंदू धर्म के त्योहारों में धूमधाम से मनाये जाने वाले त्योहारों में से एक है। यह सात से आठ दिनों तक चलने वाली पूजा है। इस दिन भारतवासी मां दुर्गा की मूर्ति  की पूजा शुरू करते हैं तथा इस पूजा का अंत दशमी पर दुर्गा विसर्जन के साथ होता है। दुर्गा मूर्ति की स्थापना षष्टि से शुरू होती है तथा दशमी को विसर्जित की जाती है। कहा जाता है कि मां दुर्गा ने इसी दिन दानव महिषासुर का अंत किया था। महिषासुर ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त करके अत्यंत शक्तिशाली हो चुका था। वह स्वर्ग लोक में देवताओं को प्रताड़ित करता तथा पृथ्वी पर भी अपने अत्याचार से सज्जन पुरुषों को यातनाएं देता था। कथा के अनुसार महिषासुर ने देवराज इंद्र को पराजित कर स्वर्ग पर अधिपत्य स्थापित कर लिया था। और देवता गण मिलकर भी उसे परास्त नहीं कर पाए।

तब देवी दुर्गा ने महिषासुर से 9 दिनों तक युद्ध किया तथा दशमी दिन उसका अंत कर दिया। इसी उपलक्ष्य में भारतवर्ष में दुर्गा पूजा का त्यौहार मनाया जाता है। महिषासुर के अंत के तिथि को ही विजयादशमी के नाम से भी जानते हैं। दसों दिनों में दुर्गा अष्टमी का दिन मां शक्ति को समर्पित होता है ।

दुर्गा पूजा 2024 (Durga Puja Date 2024)

हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, दुर्गा पूजा अश्विन महीने में मनाई जाती है। इस वर्ष, यह 9 अक्टूबर से 12 अक्टूबर तक मनाया जाएगा।

इस दिन शास्त्रीय पद्धति से पूजा करने वाले सभी भक्तों को उनके रोगों से मुक्ति मिलती हैं । 

दुर्गा पाठ (Maa Durga Path)

मां दुर्गा की भक्ति के लिए उपनिषद तथा वेदों से लिए गए मंत्रों को कुछ पुस्तकों में बांट दिया गया है। इन पुस्तकों में महत्वपूर्ण पुस्तक दुर्गा सप्तशती है। दुर्गा सप्तशती में माता दुर्गा के स्मरण हेतु कई अमोघ मंत्र हैं। जिसका प्रायः पाठ करने से भक्तों के जीवन से किसी भी प्रकार का कष्ट मिट जाता है।

दुर्गा चालीसा एवं दुर्गा आरती (Durga Chalisa & Durga Aarti)

दुर्गा भक्त देवीदास जी द्वारा रचित दुर्गा चालीसा (Maa Durga Chalisa), दुर्गा भक्ति में लिखा गया एक पाठ है। मान्यताओं के अनुसार दुर्गा चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति संसार के सभी भावबंधनों से मुक्त हो जाता है। माता दुर्गा के पूजा की समाप्ति प्रायः भक्त दुर्गा आरती से करते हैं। दुर्गा आरती के नियमित पाठ से मन को शांति प्राप्त होती है।

दुर्गा जी के प्रमुख मंदिर (Famous Goddess Durga Temple)

दक्षायणी मंदिर, तिब्बत

मां वैष्णो देवी मंदिर, जम्मू कश्मीर

मनसा देवी मंदिर, हरिद्वार

पावागढ़ काली माता मंदिर, पावागढ़

नैना देवी मंदिर, नैनीताल

भवानी माता मंदिर, पूणे

मां चामुंडा देवी मंदिर, राजस्थान

सप्तश्रृंगी देवी मंदिर, सप्तश्रृंगी पर्वत नासिक

त्रीशक्तिपीठम मंदिर, आंध्र प्रदेश

कामाख्या मंदिर, गुवाहाटी

माँ दुर्गा से जुड़े प्रश्न और उत्तर

प्रश्न - दुर्गा मां के नौ रूप कौन-कौन से हैं?

उत्तर - दुर्गा मां के नौ रूप शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, और सिद्धिदात्री हैं।

प्रश्न - दुर्गा मां की पूजा कैसे की जाती है?

उत्तर - दुर्गा मां की पूजा में दुर्गा सप्तशती का पाठ, दुर्गा चालीसा, और दुर्गा आरती का पाठ शामिल होता है।

प्रश्न - मां दुर्गा का कनकदुर्गा अवतार कौन सा है?

उत्तर - कनकदुर्गा अवतार महिषासुर के अंत के लिए दुर्गा मां ने धारण किया था और इस रूप में वे अपने भक्त कीलाडू को पर्वत बनने का आदेश देती हैं।

प्रश्न - श्री शांतादुर्गा मंदिर का पौराणिक महत्व क्या है?

उत्तर - श्री शांतादुर्गा मंदिर का महत्व इस तथ्य में है कि इस मंदिर में माता पार्वती ने शिव और विष्णु के बीच के युद्ध को समाप्त करने के लिए हस्तक्षेप किया था।

प्रश्न - दुर्गा मां के प्रमुख मंदिर कौन से हैं?

उत्तर - दुर्गा मां के प्रमुख मंदिरों में वैष्णो देवी मंदिर, मनसा देवी मंदिर, पावागढ़ काली माता मंदिर, और नैना देवी मंदिर शामिल हैं।

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1 Comments:

  1. Shivam Shivam says:

    मैं आपके सभी श्रेष्ठ प्रयासों की सराहना करना चाहता हूँ, जो इस अद्भुत ज्ञान को सभी के साथ साझा करने में सहायक हैं। आपकी वेबसाइट दुर्गा माता के भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक धरोहर है, जो उन्हें आदर्श विचारों और दया के संदेश से संवार्धित करती है।

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